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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दोनों की बाते सुनकर राजा कोई निर्णय नहीं कर सका कि भाग्य को श्रेष्ठ माना जाय या पुरुषार्थ को । उसने अपने बुद्धिमान् मन्त्री को निर्णय का कार्य सौंप दिया । मन्त्री ने कहा कि वाद-विवाद से जो सिद्धान्त नहीं प्रमाणित होते, उनकी प्रत्यक्ष परीक्षा की जानी चाहिये । आपका प्रदेश हो तो मैं इन दोनों विद्वानों की प्रत्यक्ष परीक्षा करूँ । राजाने आदेश दे दिया । मन्त्री ने दोनों पंडितों को गाँव के बाहर बने एक मन्दिर में प्रविष्ट करा के फाटक पर ताला लगा दिया । तोन दिन बाद दोनों को बाहर निकाल कर महाराज के सामने ले आया । दोनों प्रसन्न दिखाई दे रहे थे । मन्त्री ने कहा : "मन्दिर में आपको जो भी अनुभव हुआ हो, उसके आधार पर आप अपने सिद्धान्त का समर्थन कीजिये ।" 1 पुरुषार्थवादी : "मुझे जब भूख लगी तब उठकर मैं इधर-उधर हाथ फिराने लगा । एक ताक में मुझे दो लड्डू मिल गये ! यदि मैं प्रयत्न न करता तो भूखों मरना पड़ता, इसलिए पुरुषार्थवाद ही विजयी हुआ है ।" भाग्यवादी : "मैं तो भाग्य भरोसे चुपचाप एक जगह बैठा रहा । भूख मुझे भी लगी थी; परन्तु मैंने कोई प्रयत्न नहीं किया । बिना कुछ किये ही लड्डू मेरे मुँह मैं आ गया । पुरुषार्थवादी भाईने सोचा कि दो लड्डू मिले हैं, सो अकेले खाना अशिष्टता होगी । उन्होंने एक लड्डू मुझे दे दिया था । इस प्रकार बैठे-बैठे अनायास मुँह में लड्डू आ जाने से विजय भाग्यवाद की ही हुई है - ऐसा मैं मानता हूँ ।" मन्त्री : " लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता; क्योंकि यदि पुरुषार्थवादी पंडितजी ने पुरुषार्थ न किया होता अर्थात् दोनों For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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