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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७५ मार्क्सने इस बातका प्रतिपादन किया था कि श्रम से ही वस्तु मूल्यवान् बनती है । जंगलमें सूखे पेड़का कोई मूल्य नहीं है । कोई पुरुष कुल्हाड़ी लेकर वहाँ जाता है । उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके उनका गट्ठर बनाता है और फिर सिर पर उसका भार उठा कर बस्ती में उसे बेचने आता है । जिसे ईंधनकी जरूरत होती है । वह उचित मूल्य देकर उसे खरीद लेता है । यदि वही लकड़ी किसी सुतारके हाथ लग जाती है तो अपने औजारों की सहायतासे वह उससे फर्नीचर बनाता है और उस अवस्था में उस सूखी लकड़ीका मूल्य और भी बढ़ जाता है, जिसका जंगल में कोई मूल्य था ही नहीं । स्पष्ट है कि श्रमने ही उसमें मूल्य उत्पन्न किया । जितना उस पर अधिक श्रम किया जाता है, उतना उसमें अधिक मूल्य पैदा होता जाता है । इस दुनिया के विकासका इतिहास श्रम का ही इतिहास है । श्रम ही वह जादू की छड़ी है, जो जंगल को सुन्दर बगीचे में, ईंट - चूना - पत्थर - सीमेंट को सुन्दर इमारतमें, कपास को सुन्दर वस्त्रोंमें और जंगल की सूखी लकड़ी को फर्नीचर में रूपान्तरित कर देती है । कोई भी कार्य इच्छा और श्रम का ही परिणाम होता है । श्रम न हो तो केवल इच्छा से कुछ नहीं हो सकता : उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथैः । नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥ [ उद्यम से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल इच्छाओं से नहीं । सोते हुए सिंहके मुँह में पशु नहीं घुसते ! | खुदा का अर्थ है खुद श्रा ( स्वयं प्रयत्न कर) तभी मैं मिलूँगा । संसार के लिए जितना प्रयास आवश्यक होता है, उतना ही मोक्ष के लिए भी । पर्युषण में की गई आठ दिन For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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