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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ क्यों नहीं आई ? कहीं मुसाफिर एक पाँव से लँगड़ा तो नहीं है ?" मुल्लाजी का दिमाग चकराने लगा। वे शंका समाधान के लिए सीधे ऊपर गये । धीरे से उन्हों ने किंवाड़ खटखटाया। खलने पर मुसाफिर से मुल्लाने पूछा : "माफ कीजिये, मैं आपको तकलीफ देने आया हूं । आपने यहाँ आते ही अपना एक बूट तो निकाल कर फेंक दिया था; परन्तु दूसरा बूट अब तक मेरे दिमाग में घुसा हुआ है । वह निकल नहीं पा रहा है। क्या आप उसे निकाल देंगे?" मुसाफिर ने पहले जूते के पास ही रखे हुए दूसरे जूते की ओर संकेत कर के कहा कि दोनों जते यहाँ मौजूद हैं। पहला जता मैंने फेंका था और दूसरा जता मैंने धीरे से उसके समीप जाकर रख दिया था; क्योंकि मैनेजर को मैंने कमरे में किसी प्रकार की ध्वनि न करने का वचन दिया था । पहला जता फेंकते समय मैं अपना वचन भूल गया था । दसरे जते को निकालते समय मैंने उस बचन का बराबर पालन किया था । यह सब सुनकर बड़े मुल्ला के दिमाग में घुसा जूता बाहर निकल गया। हमारी अवस्था भी बड़े मुल्ला जैसी हो गई है। जगत् के जते हमने दिमाग में भर रखे हैं। जब तक वे बाहर नहीं निकलेंगे, तब तक हमें आत्मा के दर्शन नहीं हो सकेंगे। यस्मिन्वस्तुनि ममता मम तापस्तत्र तत्रैव । यत्रवाऽहमुदासे तत्र मुदासे स्वभावसन्तुष्टः ॥ [जिस वस्तु में ममता होती है, उसीसे मुझे दुःख होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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