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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस उनर से परमहंस बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने शिष्य को शाबाशी दी। परमात्मा बुद्धि से परे होता है । वह अनुभव में आ सकता है, समझमें नहीं ! तू दिल में तो प्राता है, समझ में नहीं पाता । मालूम हुआ बस, तेरी पहिचान यही है । एक सन्त ने कहा था : "मौको कहाँ ढूँढे बन्दे ! मैं तो तेरे पास में ॥" गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं : ईश्वरः सर्वभूतानाम् हृद्देशेऽर्जुन ! तिष्ठति ॥ [हे अर्जुन ! ईश्वर सब प्राणियों के हृदय में निवास करता है] प्राणियों के हृदय में आत्मा रहती है। इसलिए सिद्ध होता है कि वही परमात्मा है। केवल विषयकषाय के कचरे से तथा कर्मों की कालिमा से उसे मुक्त करने की आवश्यकता है। एक मुसाफिर किसी होटल में ठहरना चाहता था । वह मनेजर से मिला । उत्तर मैं मैनेजर ने कहा : "इस समय देने लायक कोई कमरा खाली नहीं है; फिर भी आप पुराने ग्राहक हैं । यदि आप सँभलकर रहने का वचन दें तो मैं एक कमरा दे सकता हूँ, जो किसी को नहीं दिया जाता; इसलिए सदा खाली पड़ा रहता है.' मुसाफिर : "वह कमरा सदा खाली क्यों रखा जाता है ? उसमें कोई भूतप्रेत का चक्कर तो नहीं है ?" मैनेजर : "बिल्कुल नहीं। हम लोग तो ऐसी कल्पनाओं में विश्वास भी नहीं करते ।" For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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