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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ छूट रहा था ! वह आँसू बहाता घर गया। मॉने निरस्तीकरण का कारण जानकर आत्महत्या करली । अब उस युवक पर परिवार की सेवा का कोई भार नहीं रहा था; इसलिए पुन: भागता हुआ वह अधिकारियों के पास पहुँचा। उसने देशसेवा के लिए समर्पित होने का अवसर माँगा, जो उसे दे दिया गया। यह घटना सन् १९४४ में घटित हुई थी और उस समय के सभी प्रमुख समाचारपत्रों में प्रकाशित हुई थी। जिस प्रकार उस युवकने देशरक्षा के लिए उत्साह के साथ प्राणों का त्याग किया, वैसे ही आप अपने परिग्रह का परोपकारार्थ त्याग करने के लिए तैयार हो जाएँ-प्रतिवर्ष संवत्सरी के दिन सभी धनवान श्रावक-श्राविकाओं की कतार लग जाय और वे चातुर्मासार्थं बिराजमान गुरुदेव के सामने हाथ जोड़कर निवेदन करें : “हम अपने धनको परोपकार में लगाना चाहते हैं। धन विष है ! उसे हम दान के द्वारा अमृत में परिवर्तित करना चाहते हैं। कैसे करें ? उपाय सुझाइये।" दान में भावना का महत्त्व है, सिक्कों की संख्या का नहीं। प्रसन्नतापूर्वक दिया गया एक रुपया भी खिन्नता के साथ दिये गये एक लाख रुपियों से अधिक उत्तम होता है। कविन्द्र रवीन्द्रने एक सपने का वर्णन किया है-“मैं एक दरिद्र भिखारी बन गया। हाथ में भिक्षा का एक कटोरा लिये भूखा-प्यासा भटकता रहा। थकावट के मारे शरीर अत्यन्त शिथिल हो गया। भिक्षा में कुछ न मिलने के कारण मैं रोने लगा। उसी समय किसीने दया करके मेरे पात्र में कुछ चाँवल डाल दिये। उन्हें लेकर मैं देवी के मन्दिर में गया। देवी की कृपासे मैं स्वर्ग में पहुँच गया। वहाँ एक For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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