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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ सहायता की अपेक्षा वह नहीं रखता, न वह किसी से सहायता की याचना ही करता है; परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि आप दूसरों की सहायता न करें। आपको तो सहायता करते ही रहना है। सहायता करना ही मित्रता है। आप में मित्रता का गुण रहना ही चाहिये ; भले ही दूसरों में यह गुण रहे या न रहे। पोपटलाल भाई को जुआ खेलने का चस्का लग गया था। उनका एक मित्र था-अब्दुल्ला नाई। वह चाहता था कि पोपट भाई उस दुर्व्यसन से बाहर निकल जायँ । एक दिन की बात है। पोपट भाई ने नाई को उसकी दूकान पर अनुपस्थित देखकर इधर-उधर पूछताछ की। उससे पता चला कि वह तो वहीं एक आलमारी की ओट में छिपकर बैठा है। पोपट भाई ने आलमारी के पिछे जाकर देखा कि अब्दुल्ला दोनों टाँगों के बीच मुह रख कर रो रहा है— सिसकियाँ ले रहा है- आँसू बहा रहा है । कारण पूछने पर अब्दुल्ला नाई ने पोपट भाई से कहा : "लोग मुझे क्या कहेंगे? वे कहेंगे कि नाई की दोस्ती से ही पोपट भाई ने जूआ खेलना सीखा है। खेल सीखकर खेलना शुरु कर दिया है। और अपने परिवार को मुसीबत में डाल दिया है । मैं हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना करता हूँ कि या तो आज से आप जूआ छोड़ दीजिये या फिर मेरी दोस्ती। दोनों एक एक साथ नहीं चल सकते, क्योंकि मैं झूठी बदनामी नहीं सह सकता।" । यह सुनकर पोपट भाई की आँखें भी आँसू बरसाने लगीं। उन आँसूओं से दुर्व्यसन का दाग धुलकर साफ हो गया । तत्काल उन्होंने जू आ छोड़ने का संकल्प प्रकट कर दिया। इस प्रकार मित्रता ने उन्हें पाप से और परेशानी से बचा लिया। For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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