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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir __२२६ अवजानन्ति मां मूढा मानुषों तनुमाश्रितम् ।। - गीता (वे भोले हैं, जो 'मनुष्य' के शरीर में रहने वाले 'मैं' (आत्मा या परमात्मा) का अपमान करते हैं महाभारत के शान्तिपर्व में लिखा हुआ है : गुह्य ब्रह्म तदिदं वो ब्रवीमि न मानुषाच्श्रेष्ठतरं हि किञ्चित् ॥ [तुम लोगों को मैं एक बहुत गुप्त बात बता रहा हूँ कि मनुष्य से अधिक श्रेष्ठ इस दुनिया में कुछ भी नहीं है] एक रूपक से यह बात सिद्ध की जाती है। सुनिये चाँदी की सिल्ली ने कहा : "मैं तो चाँद के समान चमकती हूँ।" सोना : "मैं सूरज की तरह चमकता हूँ।" हीरा : "मेरा मूल्य तुम दोनों से अधिक है और भार कम ।" पेटी : "रक्षक इस दुनिया में बड़ा होता है। तुम सब मेरे पेट में रहते हो । मैं तुम्हारी संरक्षिका हूँ।" ताला : लेकिन पेटी की रक्षा मेरे हाथ में है, इसलिये बड़ा मैं हूँ।" चाबी : 'तू तो मेरे इशारे पर ही खुलता और बन्द होता है; फिर घमण्ड कैसा ?" हाथ : “पगली ! मेरे बिना तो तू हिल भी नहीं सकती !" सुनार : "तुम सब बेकार झगड़ रहे हो । पेटी, ताले और चाबी का आविष्कार मनुष्य के मस्तिष्कने किया है । For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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