SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४. मानवता चत्तारि परमंगाणि दुल्लहारिण य जंतुणो । माणुस्सत्तं सुईसद्धा संजमम्मि य वीरियम् ॥ इस गाथा में मनुष्यत्व, श्रुति, श्रद्धा और संयम में पराक्रम-इन चार श्रेष्ठ अंगों को प्राणियों के लिए दुर्लभ बताया है। इन में मनुष्यत्व को सबसे पहले गिनाया गया है। चौरासी लाख जीवयोनियों में भटकते हुए प्राणियों के लिए मनुष्य के रूप में जन्म लेना दुर्लभ है । केवलज्ञान मनुष्य को ही प्राप्त होता है और वही मोक्ष का अधिकारी बनता है। मनुष्य का जो कर्तव्य है, वही मानवता कहलाती है। संस्कृत में मनुष्य की परिभाषा इस प्रकार की गई है : मत्वाहिताहितं ज्ञात्वा, कार्याणि कर्त्तव्याणि, सीव्यन्ति कुर्वन्ति इति मनुष्याः । हित और अहित को, भलाई और बुराई को जानकर जो कर्तव्यों का पालन करते हैं, वे मनुष्य हैं । विवेकसे ही मनुष्य का स्तर ज्ञात होता है। उसका मापदण्ड उसकी सम्पदा नहीं, बुद्धिमत्ता है। किसी मनुष्य का मुल्यांकन उन वस्तुओं और व्यक्तियों के मूल्यांकन के समान होगा, जिनसे वह घिरा रहता है। सत्संगति और कुसंगति से वह बनता-बिगड़ता है। एक इंग्लिश विचारक ने बहुत ठीक लिखा है : “मुझे बताओ कि तुम किनके साथ रहते हो? और मैं बता दूंगा कि तुम क्या हो।" For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy