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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ हमारा प्रतिपाद्य है-कबीर की चतुराई । यदि बादशाह को उत्तर देने में एक क्षण भी वे चूक गये होते तो फाँसी पर लटका कर मार दिये जाते ! महाराज कुमारपाल की सभा में बड़े-बड़े दार्शनिक उपस्थित थे। महाकवि जैनाचार्य श्री हेमचन्द्रसूरि ने भी वहाँ प्रवेश किया । जैनसाधुओं के वेष के अनुकूल डंडा उनके हाथ में था और कम्बल कन्धे पर । इस रूप में उन्हें आते देखकर किसी विद्वान् ने उनकी हँसी उड़ाते हुए कहा "पागतो हेमगोपालो दण्डकम्बलमुद्वहन् ॥" [ग्वाला हेमचन्द्र डंडा और कम्बल लेकर आ गया है] चतुर हेमचन्द्राचार्य ने तत्काल उस श्लोक का उतरार्ष बनाकर इस प्रकार उत्तरं दिया : "षड्दर्शनपशुप्रायांश्चारयन् जैनवाटिके ।।" [जैनदर्शन के अनेकान्त रूपी उद्यान में षड्दर्शन रूपी पशुओं को चराता हुआ (मैं आ गया हूँ)] यह सुनकर हँसने वाले सब गम्भीर हो गये और राजा कुमारपाल प्रसन्न । कहा गया हैं : चंदन की चुटकी भली: गाड़ा भला न काठ । चतुर अकेला ही भला, मूरख भला न साठ ॥ सम्राट अकबर सुप्रसिद्ध जैनाचार्य श्री हीरविजयसूर के सम्पर्क में आकर जैनधर्म के प्रति विशेष आदरभाव रखने लगा था। इसे ईर्ष्यालु जैनेतर पंडित सह नहीं सके। एक दिन उन्होंने बादशाह से कहा : "जैनधर्म में न गंगा को For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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