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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ यदि ब्रह्म के अतिरिक्त सब कुछ मिथ्या है तो आप भी मिथ्या हैं ओर मैं भी मिथ्या हूँ । यदि मिथ्या ने मिथ्या का स्पर्श कर लिया तो वह भी मिथ्या ही होगा । उस पर इतना क्रोध क्यों ? जो ब्रह्म आपके शरीर में है, वही ब्रह्म मेरे शरीर में भी मौजूद है । ब्रह्म सबका पवित्र है और शरीर सबका अपवित्र है । ब्रह्म अपवित्र नहीं हो सकता, वैसे ही शरीर भी पवित्र बिल्कुल नहीं हो सकता, चाहे वह दिनरात गंगा में डूबा रहे । अब आप ही शान्त चित्त से सोचिये कि एक पवित्र ब्रह्म ने अपने अपवित्र शरीर से यदि दूसरे पवित्र ब्रह्म के अपवित्र शरीर को छू लिया तो कौनसा बड़ा पहाड़ टूट गया कि जिससे किसी को दुबारा नहाने जाना पड़े ? " शंकराचार्य - जिन्हों ने संस्कृत में वादविवाद ( शास्त्रार्थ ) करके बड़े-बड़े पण्डितों के छक्के छुड़ा दिये थे ! — उस भंगी के सामने निरुत्तर हो गये । उन्होंने सत्य को तत्काल स्वीकार करने का साहस दिखाते हुए कहा : "मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिये । मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मेरी आँखें खोल दीं । अब मैं दुबारा नहाने न जाकर अपने आश्रम ही लौटू गा.' 1 एक जगह नौ सेना में भरती के लिए इंटरव्यू चल रहा था । एक युवक से पूछा गया : “यदि समुद्र में तूफान आ गया तो क्या करोगे ?" युवक : " तो लंगर डाल दूँगा ।" प्रश्न : "यदि फिर तूफान आगया तो ? " युवक : "फिर लंगर डाल दूँगा ।" For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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