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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह समाचार सुनते ही महाराणा को बहुत क्रोध आया। उन्होंने अनोखा कुवर को अपने सामने बुला कर पूछा : "जो चीज हम नहीं खरीद सके उसे खरीद कर तुमने मारा अपमान क्यों किया?" अनोखा कुवर ने जबाव दिया : “महाराणाजी ! मैंने आपका अपमान करने के लिए इत्र नहीं खरीदा; किन्तु मेवाड़ के और आपके गौरव की रक्षा के लिए खरीदा है । यदि मैं ऐसा न करता तो इत्र विक्रेता दिल्ली जाकर बादशाह के सामने यही कहता कि मेवाड़ के महाराणा बहुत कंजूस हैं। मैं इतनी दूरी से बड़ी पाशा लेकर उनके राजमहल में गया; परन्तु वे एक बूंद भी नहीं खरीद सके ! अब मैंने उसका मुह बन्द कर दिया है। यदि वह दिल्ली गया भी तो कहेगा कि महाराणा के एक मामूली सेवक ने सारा इत्र खरीद कर अपने घोड़े को चुपड़ दिया था और आप तो एक शीशी ही ले रहे है !" यह सुनकर महाराणा बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने दण्डित करने के स्थान पर वेतन बढ़ाकर उसे पुरस्कृत किया। । एक दिन वैसा ही एक इत्र विक्रेता दिल्ली-दरबार में गया। वहाँ अकबर बादशाह को उसने सब तरह का इत्र खोल-खोलकर दिखाया। एक-दो शीशियाँ उन्होंने खरीद भी ली। इत्रवाला अपनी शीशियों की पेटी उठाकर चला गया। इधर बादशाह ने देखा कि फर्श पर इत्र की एक बूंद पड़ी है। उन्होंने उसे उठाकर अपनी मूछों पर लगा लिया; किन्तु जब वे बद उँगली पर लगा रहे थे, ठीक उसी समय अकस्मात् बीरबल वहाँ आ गये। उन्होंने फर्श पर से For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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