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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४७ सिटी" की स्थापना के लिए चन्दा एकत्र कर रहे थे। उसी सिलसिले में एक दिन वे रामपुर के नवाब साहब के पास भी जा पहुंचे। नवाब उस समय नशे में थे। मालवीयजी ने अपना परिचय देकर नवाब से निवेदन किया :- "वड़ी आशा के साथ आया हूँ। बनारस हिन्दु यूनिवर्सिटी के लिए कुछ आप भी चंदा देने की कृपा करें।" नवाब ने गुस्से में कहाँ :- “क्या बोला ?...हिन्दू...हिन्दू यूनिवर्सिटी के लिए हम चंदा दें ?...हट जाओ सामने से नहीं तो जूता मार देंगे !" । मालवीयजी शान्ति से खड़े रहे। नवाबने एक पाँव से जूता खोलकर सचमुच उन पर फेंक दिया ! कितना अपमान हुमा? परन्तु वे चन्दा अपने लिए तो माँग नहीं रहे थे कि उस अपमान से शर्मिन्दा होते : मर जाऊँ माँगू नहीं, अपने तन के काज । परमारथ के कारणे मोहि न प्रावे लाज ॥ कुछ इस दोहे जैसे ही भाव उनके मन में उठ रहे थे । आखिर नवाब का फेंका हुआ वह जूता ही उठा कर चल दिये। बाजार में आये। वहाँ एक चौराहे पर खडे होकर बादशाह का वह जूता नीलाम करने लगे। बोली लगने लगी। किसी सी०आई०डी० ने नवाब को खबर दे दी कि आपका जूता नीलाम किया जा रहा है। उससे आपकी इज्जत मिट्टी में मिल जायगी। नवाबने वज़ीर से सलाह लेकर अपने भण्डारी को घटना स्थल पर भेज दिया और कह दिया कि सबसे ऊँची बोली लगाकर वह जूता ले आयो। For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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