SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ थीं। उनमें से तीन सती हो गई हैं; परन्तु एक माता परिवार का पालन-पोषण करने के लिए जीवित रह गई।" बादशाह "इस्लाम धर्म में तो चार औरतों से विवाह करने की छूट है; परन्तु तुम्हारे हिन्दु पिताने चार शादियां कैसे की ? क्या तुम अपनी उन चारों माताओं के नाम बताओगे ?" बालक : “जहाँपनाह ! सुनिये। मेरी जो तीन माताएँ पिताजी के साथ सती हो गई थीं, उनके नाम हैं - वीरता, उदारता और बुद्धिमत्ता; किन्तु मेरी जो चौथी माता जीवित रह गई है उसका नाम प्रतिष्ठा (नेकनामी) है।" बादशाह इस उत्तर से बहुत-बहुत प्रसन्न हुआ और उये पाँच स्वर्णमुद्राएँ पुरस्कारमें देते हुए कहा : "हो तो आखिर तुम बीरबल के ही बेटे ! जैसा बाप बुद्धिमान् था, वैसे ही तुम भी हो । जल्दी-जल्दी बड़े हो जाओ। फिर मैं तुम्हें भी मन्त्री बना हूँगा ।" इस दृष्टान्त से पता चलता है कि पुत्रों में पैतृक परम्परा से भी गुण आते हैं । _अन्त में एक रूपक द्वारा मैं आजका वक्तव्य समाप्त करूंगा। ___एक माली था । वह खाली टोकरी लेकर बगीचे में उगे हुए पौधोंके पास फूल तोड़ने के लिए गया । वहाँ कुछ देर तक चमेली, मोगरा, कनेर, गेंदा आदि के फूल तोड़-तोड़ कर अपनी टोकरी में वह डालता रहा । सहसा पास ही उसे हँसते हुए कुछ गुलाबी चेहरे दिखाई दिये । माली उनके पास जा पहुँचा । वे गुलाब के पौधे For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy