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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० __ एक गाँव में रहने वाला कोई आदमी अपने किसी कामसे एक बार शहर में गया । काम पूरा होने के साथ ही दिन भी पूरा हो जाने से वह अपने समाज के किसी बन्धु के घर ठहर गया । शहर वाले खिलाने - पिलाने में बहुत सावधान रहते हैं । यह बात बेचारे गाँव वाले आदमी को मालूम नहीं थी। शहर वाले सेठ ने भोजन के समय शिष्टाचारवश कह दिया : "आइये, भोजन करें।" ग्रामीण आदमी सेठके साथ भोजनकक्ष में चला गया। वहाँ दोनों के लिए थालियाँ लगा दी गई। वहाँ से रसोईघर के चूल्हे पर भी नज़र पड़ जाती थी। सेठानी सेठसे भी अधिक होशियार थी। उसने भोजनार्थ आई इस नई बला को टालने के लिए एक उपाय सोचा। उसके अनुसार चिमटा चूल्हे की जलती लकड़ी पर रख दिया। ग्रामीण ने पूछा : “यह चूल्हे में चिमटा गरम क्यों किया जा रहा है ?" सेठानी बोली : " जब यह चिमटा खूब तपकर अपने सिरों (दोनों टाँगों) पर लाल-लाल हो जायगा, तब इससे अपने घर आये मेहमान की पीठ दागी जायगी, जिससे दुवारा घर पाने पर पहिचाना जा सके कि यह अपना ही मेहमान है, किसी और घरका नहीं। यह क्रिया पूरी हो जाने के बाद मेहमानों की थाली में रोटियाँ परोसी जाती हैं। उससे पहले नहीं।" यह सुनते ही अत्यन्त भयभीत ग्रामीण लघशंका का बहाना करके बिना कुछ खाये-पिये ही वहाँ से खिसक गया। कंजूसी जो न कराये सो थोड़ा। सेठानी अपनी सफलता पर For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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