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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११५ मियाँजी : "मेरा विचार तो एक ही रुपया देने का है ।" दूकानदार : "अब आप से एक रुपया लेकर लेने का नाम क्या करूँ ? आप तो मुफ्त में ही इसे ले जाइये ।” मियाँजी : "यदि मुफ्त में ही देना है तो दो छाते दीजिये । एक मेरी बीबी के काम आ जायगा ! " यह है अनुदार मनोवृत्ति । ऐसी मनोवृत्ति से मनुष्य अपनी स्थिति हास्यास्पद बना लेता है ! एक बार बड़े मुल्ला बीमार पड़े और बेहोश हो गये । कुटुम्बियोंने समझा कि मर गये हैं । रोना-धोना मच गया । अड़ौसी- पड़ौसी इकट्ठ े हो गये । एक ने कहा कि मुल्ला का जनाजा शानसे निकाला जाय । दूसरे ने कहा : "यदि अधिक खर्च होगा तो वह मुल्ला के स्वभाव से विपरीत हो जायगा, क्योंकि वे सदा कम से कम खर्च में काम चलाने के पक्षपाती रहे हैं ।" तीसरा बोला : “हाँ, जनाजा सादगी से निकालना ही ठीक है ।" चौथा : "कितनी भी सादगी से क्यों न निकाला जाय, कुछ न कुछ खर्च तो होगा ही ! 22 मुल्ला होश में आ चुके थे । वे यह सारी चर्चा सुनकर उठ बैठे और बोले : " आप लोग इतनी चिन्ता क्यों कर रहे हैं ? मैं पैदल ही आपके साथ कब्र तक चला चलता हूँ. वहीं मर जाऊँगा । आप शान से मुझे दफना कर चले आइयेगा । जनाजे का सारा खर्च बच जायगा ! "" एक सेठजी थे । वे भी बड़े कंजूस थे । एक बार बीमार For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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