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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कभी सुख है कभी दुःख है, इसीका नाम दुनिया है ।" दुनिया में सुख और दुःख का चक्र बराबर चलता ही रहता है : कस्यात्यन्तं सुखमुपनतं दुःखमेकान्ततो वा । नीचैर्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण ॥ [ किसके प्रात्यन्तिक सुख या केवल दुःख प्राप्त होता है ? चक्र के आरों की तरह दशाएँ ऊपर-नीचे होती रहती हैं ] जीव अपने सुख-दु:ख का जिम्मेदार स्वयं ही है, कोई दूसरा नहीं : सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता परो ददातीति कुबुद्धिरेषा अहं करोमीति वथाभिमानः स्वकर्मसूत्रग्रथितो हि लोकः ॥ अध्यात्मरामायणम् [ सुख और दुःख कोई किसीका नहीं देता । दूसरा कोई मुझे सुख या दुख देता है - ऐसा समझना गलत है । "मैं करता हूँ" ऐसा झूठा घमण्ड नहीं करना चाहिये; क्योंकि संसार अपनेअपने कर्मसूत्रों में गुथा हुआ है अर्थात् अपने-अपने कर्मों के अनुसार ही संसारी जीव सुख या दुःख का अनुभव करते हैं; इसलिए अपने सुख-दुःख के लिए वे स्वयं ही जिम्मेदार हैं ] हमारे सुख-दुःख में दूसरे केवल निमित्त बन जाते हैं । जैसा कि शास्त्रकार कहते हैं : सव्व पुव्वकयाणं कम्माणं पावए फलविवागे । प्रवराहेसु गुणस्य निमित्तमितं परो होइ ॥ [ सब जीव पूर्वकृत कर्मों का फल प्राप्त करते हैं । अपराध ( दु:ख ) और गुण (सुख) में दूसरा तो निमित्तमात्र होता है । For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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