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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मितभाषिता: एक मौन साधना मौन के दो प्रकार : www.kobatirth.org “मौनावलम्बनं साधोः, संज्ञादिपरिहारतः । वाग्वृत्तेर्वा निरोधो यः, सा वाग्गुप्तिरिहोदिता । । जैन शास्त्रों में मौन के लिए वचनगुप्ति या वाग्गुप्ति शब्द का प्रयोग किया गया है. इसकी परिभाषा इस प्रकार है : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५ [ संकेत आदि का त्याग करके साधु जो मौन धारण करता है अथवा वाणी की प्रवृत्ति का निरोध करता है, उसे वाग्गुप्ति कहा गया है) इस परिभाषा से वाग्गुप्ति के प्रकार स्पष्ट होते हैं. पहली वाग्गुप्ति वह है, जिसमें सर्वथा मौन धारण किया जाता है. मुँह, आँख, भौंह आदि का विकार, ऊँगली से इशारा, ऊँचे स्वर में खंखारना, हुंकार, कंकर आदि फेंकना आदि अपने भाव को प्रकट करने के समस्त साधनों को सर्वथा त्याग करके “आज मुझे कुछ भी नहीं बोलना है” ऐसा सुदृढ़ अभिग्रह धारण किया जाता है. मुँह बन्द रखकर चेष्टाओं से बात कहना वास्तव में मौन है भी नहीं. केवल मौन का दम्भ है- दिखावा है . ] वागुप्ति का दूसरा प्रकार वह है, जिसमें बहुत सोच समझ कर जितना आवश्यक हो, उतना ही विनयपूर्वक मधुर, सरल शब्दों में बोला जाता है. प्रभु महावीर ने उत्तराध्ययन सूत्र में वाग्गुप्ति का फल इस प्रकार बताया है : वइत्याए णं निव्विकारत्तणं जणयइ । निव्विकारे णं जीवे अज्झप्पजोग साहणजुत्ते यावि भवद् ।। हितं यत्सर्वजीवानाम्, त्यक्तदोषं मितं वचः । तद्धर्महेतोर्वक्तव्यम्, भाषासमितिरित्यसौ । । [वाग्गुप्ति के दूसरे प्रकार को ही भाषा समिति कहते हैं. इसकी परिभाषा करते हुए आचार्य श्रीमद् विजयलक्ष्मीसूरिजी ने अपने सुविशाल ग्रन्थ " उपदेशप्रासाद" में लिखा है : (जो सब जीवों के लिए हितकारी हो, दोष रहित हो, परिमित हो ऐसा वक्तव्य धर्मार्थ देना अर्थात् धर्म प्रचार के लिए ऐसा बोलना ही भाषासमिति है ) वागुप्ति में निवृत्ति की प्रधानता है और भाषासमिति में प्रवृत्ति की प्रधानता है, यही दोनों में अन्तर है. भाषासमिति जिसमें होती है, उसमें वाग्गुप्ति अवश्य होती है. कहा है For Private And Personal Use Only समियो णियमा गुप्तो, गुत्तो समियत्तणंमि भयणिज्जा । कुसलवयमुदीरंतो, जं वइगुत्तोवि समियोवि ।। ( जो समिति वाला है, वह नियम से गुप्ति वाला है; परन्तु जो गुप्ति वाला है, वह समिति
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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