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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जीवन में सदाचार समयं गोयम ! मा पमायए ।। [ हे गौतम! तू क्षण-भर का भी प्रमाद मत कर ] सभ्यता का निमित्त: सदाचार Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वामी विवेकानन्द की साधारण सी पोशाक देखकर अमेरिका में कुछ लोग हंसने लगे. स्वामीजी समझ गये. उन्होंने कहा - "आपके देश में सभ्यता का निर्माता दर्जी है; परन्तु मैं जिस देश से आया हूँ, वहाँ सभ्यता का निर्माता सदाचार है !” ३९ यह सुनकर हंसने वाले गंभीर हो गये. जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आप हमारे लिए क्या लाये हैं, तब उन्होंने कहा- "मैं तुम्हारे समाज पर एक बम का विस्फोट करूँगा और तुम्हारा समाज कुत्तों की तरह मेरा अनुसरण करेगा.” उनके भीतर सदाचार का जो तेज था वह ज्ञान का जो प्रकाश था, उसी से वे ऐसी बात कह सके. उनकी यह बात ठीक भी निकली. देहावसान के सौ वर्ष बाद अमेरिका की सरकार ने शताब्दी मनाई उनकी. - वह एक ही संन्यासी था, जो भारतीय संस्कृति का डंका बजाकर अमेरिका से लौटा. जाने को तो और भी कई लोग यहाँ से गये कुछ हवाई जहाज में, कुछ हेलीकॉप्टर में और कुछ जलयान में; परन्तु सब ऐश्वर्य बटोरकर - भौतिक सुख भोग कर लौट आये. विवेकानन्द ही थे, जो सिंह गर्जना करके - अमेरिकनों का हृदय जीत कर उन्हें प्रभावित करके लौटे. कारण क्या था? उनका सदाचारी जीवन. सद्विचार की अपेक्षा सदाचार का अधिक प्रभाव पड़ता है. कफेलर नामक बहुत बड़ा उद्योगपति एक बार स्वामी विवेकानन्द के पास आया. स्वामीजी ने पूछा "मुझसे क्या काम है?" वह बोला - " मैं आपसे मार्गदर्शन प्राप्त करने आया हूँ !” “पहले आप कुछ त्याग करके आइये; फिर मार्गदर्शन दूंगा." स्वामीजी ने कहा. वह लौट गया . त्याग की योजना बनाई तैंतीस करोड़ डालर की निधि का दान करके “ राकफेलर फाउण्डेशन" की स्थापना की. इस फाउण्डेशन के माध्यम से निर्धन छात्र-छात्राओं के लिए अध्यापन की निःशुल्क व्यवस्था की गई. इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे अविकसित देशों की विकास योजनाओं को पूरा करने के लिए भी आर्थिक सहायता इस फण्ड से पहुंचाइ जाने लगी. For Private And Personal Use Only यह सब करने के बाद पुनः वह स्वामीजी के पास लौट आया, उसे अपने त्याग का घमंड था. वह शब्दों से प्रकट भी हो गया, बोला : “मैंने आपकी इच्छा के अनुसार परोपकार के लिए इतना बड़ा फाउण्डेशन बनाया. इतना बड़ा त्याग किया, इसके लिए आप मुझे आशीर्वाद दीजिये और धन्यवाद भी .”
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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