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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ जीवन दृष्टि में पुनः स्थिर हुआ] साध्वी ने ठीक समय पर ठीक वचन कह कर पतन से अपनी भी रक्षा की और उस साधु की भी. इस घटना के बाद वह युवक साधु भगवान नेमिनाथ के समीप गया. वहाँ तन से नहीं, किन्तु वचन और मन से किये गये अपने पाप की आलोचना की और उचित प्रायश्चित्त लेकर अपनी आत्म-शुद्धि की. इससे विपरीत यदि कोई स्त्री युवक साधु से भोगयाचना करे तो इसे अनुकूल परिषह कहा जाता है. उस परिस्थिति में साधु को क्या करना चाहिये? इस प्रश्न के उत्तर में चौदह पूर्व भवों के ज्ञाता श्रीभद्रबाहुस्वामी ने कहाः - "पहले तो समझाना चाहिये. उससे काम न चले तो झूठ बोल कर (जैसे - “मैं नपुंसक हूँ" ऐसा कह कर) उसे विरत करना चाहिये, जब उससे भी काम न चले तो आत्महत्या करके भी अपने चरित्र की रक्षा करनी चाहिये. किन्तु वह सबसे अन्तिम उपाय है.” वरित्र की रक्षा के लिए मृत्यु का स्वागत करने की बात कही गई है, इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि चरित्र का जीवन में कितना महत्त्वपूर्ण स्थान है. आधुनिक युग में भी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द आदि के जीवन चरित्र से परिपूर्ण रहे हैं - सदाचार से सुगन्धित रहे हैं. चरित्र आत्मा का प्राण : आचार्य हेमचन्द्रसूरि की दृष्टि में चरित्र आत्मा का प्राण है, प्राण चले जाय, तो शरीर का कोई महत्त्व नहीं रहता, उसी प्रकार चरित्रहीन आत्मा भी महत्त्वहीन हो जाती है. चरित्र को खोकर कोई आत्मा को पा नहीं सकता. चरित्र की रक्षा के ही लिए सारे यम-नियम निर्धारित किये गये हैं. सड़े हुए कान के कुत्ते का जिस प्रकार सर्वत्र अपमान होता है, दुराचारी मनुष्य का भी सर्वत्र उसी प्रकार अपमान होता है. शहजादी का ज्ञान : दिल्ली के बादशाह अकबर की शहजादी किसी बुजुर्ग मौलवी से पढ़ती थी. पढ़ाई में लापरवाही से उदास होकर मौलवी ने एक दिन कहा - "बेटी! तुम बराबर पाठ याद नहीं करती, आज मुझे तुम्हारी शिकायत बादशाह से करनी पड़ेगी." शहजादी को शहंशाह की बेटी होने का गुरुर था. वह भला क्यों किसी के दबाव में आती? बोल पड़ी - “आप मुझे क्या पढ़ायेंगे? मैं तो पढ़ने के बहाने आपको वेतन दिलवाने का अहसान आप पर कर रही हूँ, अन्यथा मैं तो खुदा के घर से ही नौ लाख चरित्र सीख कर आई हूँ. For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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