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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ जीवन दृष्टि पर मेरा अधिकार नहीं. इसको हाथ लगाना भी मेरे लिए जहर समान है, आखिर बात नगर सेठ तक पहुंची. पंचों को निर्णय लेना पड़ा कि ये सारा धन परोपकारी कार्यों के लिए उपयोग किया जाये क्यों कि दोनों ही व्यक्ति उस सम्पत्ति को रखने के लिए तैयार नहीं थे. जिस दिन हम इतने प्रामाणिक बन जायेंगे उस दिन स्वयं ही सद्गति प्राप्त कर लेंगे. फिर आपको किसी प्रवचन की जरुरत नहीं पड़ेगी. चारित्र का प्राण सदाचार : हमारे इतिहास में चरित्र व सदाचार की प्रधानता के उदाहरण भरे पड़े हैं. स्वामी रामकृष्ण जब काली के उपासक बन गये तो उनका दृष्टिकोण भी बदल गया, हर स्त्री को मां के रूप में देखने लगे. यहाँ तक कि अपनी पत्नी को भी मां का संबोधन दिया. मां के नाम में ही ऐसी शक्ति है कि वह दुर्विचारों के सारे परमाणुओं को नष्ट कर दे. संत सूरदास को भी एक बार नेत्र विकार उत्पन्न हुआ. विकार को देखकर उनकी उपासिका ने कहा-आपके लिए मैं सब कुछ कर सकती हूँ. भोग पिपासा शांत कर सकती हूँ. चाहे इसके लिए मुझे नर्क में ही क्यों न जाना पड़े. पतन के गर्त में भी आपके लिए पहुँचना स्वीकार्य है. उसके इतना कहते ही संत को चेतना हुई, सारा विकार दूर हो गया. प्रायश्चित में उन्होंने अपनी दोनों आंखे फोड़ ली कि आज से मुझे इस जगत को देखना ही नहीं है. देखना है तो मात्र जगत्पति को अपनी मन की आंखों से देखूगा. यह चरित्र का ही बल था, ब्रह्मचर्य का ही प्रभाव था कि हनुमान लंका पहुंच गये. जब सीता के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हुए और कहा-माता आप मेरी पीठ पर बैठ जाइये. भगवान् राम की कृपा से मैं अभी आपको ले चलता हूँ. सीता ने जवाब में कह दिया- हनुमान आज तक मैंने अपनी इच्छा से कभी भी पर-पुरुष का स्पर्श नहीं किया. यह मेरे लिए असंभव है. स्वामी विवेकानन्द को भी प्रलोभन मिला, लेक्चर के बाद एक अमेरिकन लेडी ने उनसे प्रभावित होकर विवाह का प्रस्ताव रखा. उन्होंने तुरन्त संभल कर कहा-मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि अगले जन्म में मैं आपको मां के रूप में पा सकू. इस शब्द में ही इतना चमत्कार था कि उस अमेरिकन लेडी का सारा विकार दूर हो गया, आगे चलकर वही औरत उनकी परम शिष्या बनी. ब्रह्मचर्य तप का प्रभाव : आचार्य हेमचन्द्रसूरि के शिष्य गुजरात के राजा कुमारपाल पौषधव्रत में बैठे थे. मुसलमान बादशाह को मालूम पड़ा तो हमला करने के लिए सेना लेकर आ पहुंचा और पाटन को चारों ओर से घेर लिया. सम्राट् कुमारपाल ने आचार्य हेमचन्द्रसूरि से निवेदन किया- भगवन्, कहीं धर्म की निंदा न हो जाय. जिन शासन की अपभ्राजना न हो जाय. लोग कहीं ऐसा न कहे For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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