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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन दृष्टि २४ के द्वारा ऐसा आक्रान्त हो गया कि उसमें धर्म या उच्चतर जीवन-मूल्यों के लिये स्थान नहीं रहा. यदि औद्योगिक सभ्यता के विकास और धर्म-भावना के विलोप से मानवता की समस्याओं का समाधान हो जाता तो बहुत अच्छी बात होती, किन्तु ऐसा नहीं हुआ. यह औद्योगिक सभ्यता जहाँ अपने साथ सुख-सुविधा के सारे साधन लायी वहाँ उनके साथ-साथ व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अशान्ति, असंतोष, असुन्तलन, अव्यवस्था, अनैतिकता और अपराध भी लायी. पश्चिम के समृद्ध देशों में अशान्ति और अपराध बढ़े एवं औद्योगिक सभ्यता के प्रसार के साथ-साथ अन्य देशों में भी यही स्थिति हुई. सारा संसार आध्यात्मिक संकट से ग्रस्त हो गया. यह संकट उन गरीब देशों में और भी अधिक उग्र रूप से प्रकट हुआ जहाँ विषमता अधिक है, जहाँ कुछ लोगों को सुख-सुविधा के सभी साधन उपलब्ध हैं और बहुसंख्यक लोगों की न्यूनतम आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं हो पाती. भौतिकवाद एवं औद्योगीकरण से उत्पन्न होने वाली विषमता दोनों महायुद्धों के रूप में प्रकट हुई. और इस विषमता के शल्यचिकित्सा का उपक्रम साम्यवादी दर्शन है. पश्चिमी देशों को यह अनुभव हो गया कि केवल भौतिक समृद्धि से सुख-शान्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती; भौतिक समृद्धि के साथ-साथ आत्मोन्नति भी इतनी ही आवश्यक है. इसलिये धर्म-साधना के द्वारा आत्मोन्नति का प्रयास बढ़ा. वहाँ के बुद्धिजीवी वर्ग में हिन्दू-धर्म और बौद्ध धर्म के प्रति विशेष आग्रह उत्पन्न हुआ क्योंकि ये धर्म आत्मा की गहराइयों में अधिक दूर तक जाते हैं, तर्क एवं परीक्षा की कसौटी पर अधिक खरे उतरते हैं. सभी मतों का प्रगटीकरण एक ऐसी वस्तु है जिसका अनुभव प्रत्येक मनुष्य नहीं कर सकता, उसे केवल विश्वास पर मानना पड़ता है, जब कि उपनिषदों में प्रतिपादित आत्मा का अमरत्व एक ऐसा सत्य है जिसका अनुभव प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में कर सकता है, इसे महान मनोवैज्ञानिक सी. जी. जुंग ने अपनी खोजों के आधार पर प्रमाणित किया है. पश्चिमी देशों में ज्ञान के प्रति जो अदम्य पिपासा एवं गुणग्राहकता है उससे प्रेरित होकर वे भारतीय धार्मिक साहित्य एवं धार्मिक साधनाओं का अध्ययन कर अपने जीवन को उन्नत बनाने एवं भौतिकतावाद की बुराइयों को दूर करने में लगे हुए हैं. शॉपनहावर की यह भविष्यवाणी सत्य होती दिखाई देती है कि भारतीय दर्शन यूरोपीय मानस को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा. पश्चिमी देशों में न केवल भारतीय धर्मों का अध्ययन हो रहा है बल्कि आधुनिक आध्यात्मिक साधकों- रामकृष्ण, विवेकानन्द, गांधी, अरविंद, रमण, महर्षि, शिवानंद, महेश योगी, कृष्णमूर्त्ति और गोपीकृष्ण आदि वैज्ञानिकों ने सृष्टि की व्यापकता का अध्ययन करना चाहा और वे उनकी अनन्तता और रहस्यात्मकता से अभिभूत होकर सृष्टि के प्रति नतमस्तक हुए. इसी प्रकार जुलियन हक्सले और जे. बी. एस. होल्डेन आदि वैज्ञानिकों ने जीवन या आत्मा का अध्ययन करना चाहा और वे भी इसकी गहनता का पार न पाकर परमात्मा के प्रति नतमस्तक हुए. विज्ञान के उदय-काल में लोग ऐसा समझते थे कि विज्ञान जीवन और जगत की पूरी व्याख्या कर किन्तु शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि जीवन और जगत के अनन्त रहस्यों को समझने For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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