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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धर्म के अन्दर जाकर अमृत बन गया. धर्म आत्मा का भोजन : www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ यह शरीर विना भोजन के कार्यशक्ति प्राप्त नहीं कर सकता है, घड़ी की कार्यशक्ति चाबी है, घड़ी को चलाने के लिए चावी देनी ही पड़ेगी. मोटर को चलाना है तो पेट्रोल चाहिये, उसी तरह आत्मा को गति देने के लिए, शक्ति प्राप्त करने के लिए उसे धर्म का भोजन चाहिये. धर्म आत्मा को पोषण देता है और उसी के द्वारा परम तत्व को प्राप्त करता है. साधना में धैर्य चाहिये. आप सोचें कि अभी साधना करें और अभी धर्म तत्व प्राप्त हो जाय तो इसके लिए तो बहुत बड़ा पुण्य वल चाहिये. मैं आपको एक किलो घी पीला दूं कि तुरन्त आपको शक्ति प्राप्त हो जाय तो ऐसा करने से शक्ति प्राप्त करने की बजाय शरीर का नुकशान ही होगा. आप नियमित थोड़ा-थोड़ा ग्रहण करेंगे. तब जाकर साल भर बाद में आपको अपने अंदर स्फूर्ति व शक्ति का अनुभव होगा. उसी तरह धर्म के क्षेत्र में साधना का रसायन आचार पथ्य से सेवन करें तो वह धीरे-धीरे आगे चलकर आत्मा को शक्ति प्रदान करने वाला बनेगा, विचारों को पुष्ट करने वाला बनेगा. ये ऐसी चीज नहीं कि आज करें, आज का आज फल प्रदान करने वाला बन जाय. . हो सकता है, यदि मन में एकाग्रता स्थिरता आ जाय तो ऐसी मुक्ति प्राप्त हो जाय कि भयंकर संकट से भी आपको मुक्ति दिला सकती है. १९४७ के अंदर आचार्य श्री विजय वल्लभसूरिजी महाराज का चातुर्मास गुजरांवाला में था. देश के विभाजन के साथ ही वह सारा प्रदेश पाकिस्तान में चला गया. आचार्यजी महाराज के साथ पचास साठ साधु साध्वियों का चातुर्मास वहाँ पर था. For Private And Personal Use Only वाहर निकलने की कोई सम्भावना नहीं थी. यहाँ के संघों ने तार देकर प्रार्थना की कि आप हवाई जहाज के द्वारा आ जाये. मोटर में आ जाये. मीलिट्री की सुरक्षा में आप आ जाये. परन्तु उन्होंने एक ही बात कही मरना यहाँ या वहाँ, मरना तो जीवन में एक बार ही होगा. मैंने परमात्मा के समक्ष प्रतिज्ञा की है, उसका परिपूर्ण पालन करना मेरा धर्म है, अगर मेरे में अहिंसा का तत्व मौजूद है तो आने वाला मेरा मित्र वन कर ही आयेगा. वहाँ के अनुयायियों ने क्या किया ? वे इतने मजबूत कि अपने घर के सदस्यों को हिन्दुस्तान भेज दिया और हर घर से एक दो आदमी वहाँ रह गये. चार पांच सौ का एक समुदाय वन गया जिनकी भावना हम लोग गुरु भगवन्त के साथ ही जीयेंगे या मरेंगे. यह दृढ़ निश्चय करके उपाश्रय में आ गये. विरोधियों को पता चला कि उपाश्रय में इतने आदमी हैं तो क्यों न वमों का उपयोग करें? आचार्य भगवन्त ने उपाश्रय पर खतरा मंडराते देखकर कुछ नहीं किया मात्र इतना कि नवकार मन्त्र का जाप और आयंविल, ताकि अगर मृत्यु आ भी जाय तो परमात्मा के स्मरण में मृत्यु मिले. मृत्यु में भी महोत्सव का आनन्द मिले.
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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