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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ जीवन दृष्टि चले आना. मैं तुम्हें काम दूंगा. और हर संभव सहयोग दूंगा. अभी मैं जल्दी में हूँ. यह मेरी भेंट ले लो, इसका तिरस्कार न करना. हवा खोरी के लिए आया व्यक्ति स्तब्ध रह गया. उसे बोलने का भी अवसर नहीं मिला. पीछे वाला व्यक्ति तुरन्त पलटा और तेजी से अपनी गाड़ी की ओर लौट पड़ा. पहिले वाला व्यक्ति अपने हाथ में एड्रेस कार्ड और ५ डालर लिये अपनी गाड़ी में आ बैठा. अब उसके हृदय में विचार का आन्दोलन शुरू हुआ. मैं भले ही करोड़पति हूँ पर मेरा आज तक का जीवन निष्फल गया. मैंने कभी परोपकार का कार्य नहीं किया. जीवन तो इस व्यक्ति का है जो दुसरों के लिए भी सोचता है. दुसरों के दुःख दर्द में काम आता है. उस व्यक्ति के मात्र ५ मिनिट के अल्प परिचय से उसके जीवन के अंदर इस नये परिचय से परिवर्तन आया. कुछ ही महिनों बाद न्यूयार्क टाइम्स के अन्दर उसने एक समाचार पढ़ा कि- कोई वहुत बड़ी कम्पनी भयंकर घाटे में जा रही है. शायद दिवाला निकल जाये. कम्पनी का नाम उसे कुछ परिचित सा लगा. अपने पास के एड्रेस कार्ड से मिलाया तो उसने देखा कि ये कम्पनी तो उसी परोपकारी व्यक्ति की है जिसने मुझे जीवन जीने की कला सिखलाई. उसने उस समय जो मेरी मदद की, उसका बदला चुकाने का समय आ गया. वह अपनी चेक बुक लेकर उस व्यक्ति के ऑफिस में गया, जाकर के परिचय दिया- मैं आपको कुछ महिने पहिले समुद्र तट पर मिला था और आपने कहा था कि मैं सहयोग करूँगा. सामने वाले व्यक्ति की वाणी में विनम्रता कितनी कि हाथ जोड़ कर बोला-क्षमा कीजिए; इस समय मैं बहुत लाचार हूँ. स्थिति सुधरने दीजिये फिर मैं आपको अवश्य सहयोग करूँगा. चेक बुक लेकर आया वह व्यक्ति वोला- मैं आपसे कुछ मांगने नहीं आया वरन् देने आया हूँ. आपने मेरे उपर इतना महान उपकार किया है जिसका किंचित् मात्र वदला देने आया हूँ, ताकि मेरी आत्मा कर्ज मुक्त वन जाये. उस दिन आपने मुझे गलत समझ लिया था. मैं तो अपने चित्त की शांति के लिए वहाँ गया था. मैं कई कम्पनियों का डायरेक्टर हूँ. कइयों का मेनेजिंग डायरेक्टर हूँ. वतलाइये मैं आपको क्या सहयोग दे सकता हूँ. मुझे आपकी मदद करते हुए अत्यन्त खुशी ही होगी. मुझे सेवा का अवसर दीजिए. जीवन की यह कला मैंने आप से ही सीखी है. उसने कहा-आप मेरे घाटे को पूरा नहीं कर सकते. पूरे पचास लाख डालर का नुकसान है. आने वाले व्यक्ति ने चेक बुक निकाल कर पचाल लाख डालकर का चेक काट कर उसे देते हुए कहा-ये चेक मैं आपको दे रहा हूँ. और कुछ मेरे लायक सेवा हो तो निःसंकोच टेलीफोन करियेगा. उपकार का कैसा वदला? पांच डालर के बदले पचास लाख डालर. ये परिवर्तन सिर्फ दो मिनट के परिचय से आया. कोई घण्टा आधा घण्टा प्रवचन नहीं दिया था उसने. मात्र ५ मिनट के अल्प परिचय से एक व्यक्ति के जीवन में इतना बड़ा परिवर्तन आया कि उसने ५० लाख डालर का चेक कितने सहज और उदार भाव से दे दिया. जिसने जीवन जीने की कला सीख ली हो फिर उसके लिए पैसे का कोई महत्व नहीं रह जाता है. मानवता की सेवा करना उसके For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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