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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन दृष्टि आहते तव निस्वाने स्फुटितं रिपुहृद्घटैः। गलितं तत्प्रियानेत्रैः राजश्चित्रमिदं महत् ।। [आपका डंका बजने पर शत्रुओं के हृदयघट फूट गये और उनकी स्त्रियों की आंखें टपकने लगीं! राजन्! यह महान् आश्चर्य की बात है. (यहाँ असंगति अलंकार का प्रयोग किया गया है, साधारणतः जहाँ कारण होता है, वहीं कार्य भी होता है. इससे विपरीत कारण कहीं हो और कार्य कहीं दूसरी जगह ऐसा वर्णन जहाँ किया जाता है, वहाँ यह असंगति नामक अर्थालंकार होता है. यहाँ नगारा पीटा जा रहा है तो वही फूटना चाहिये; परन्तु फूट रहे हैं - शत्रुओं के हृदयघट और यदि घट फूट रहे हैं तो उन्हीं से जल टपकना चाहिये; परन्तु जल टपक रहा है शत्रुओं की स्त्रियों की आँखों से! आशय यह है कि आपके नगारों की ध्वनि सुन कर ही भय के मारे शत्रुओं का हार्टफेल हो गया और उनके मरने से उनकी विधवाएँ आँसू बहाने लगीं)] चारों श्लोक एक से एक बढ़ कर थे. सुनने वाले सभी सभासदों ने उनकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की. महाराज भी अत्यंत प्रसन्न हुए. उन्होंने सूरिजी की इच्छा के अनुसार ॐकारेश्वर में ॐकारेश्वर के मन्दिर से भी ऊँचे चार द्वारों के एक विशाल मन्दिर का निर्माण करवा दिया, आचार्यश्री सिद्धसेन दिवाकर सूरि ने उसमें भगवान् पार्थनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई. यह था सारगर्भित मनोहर मधुर वाणी का चमत्कार. कहा है :तास्तु वाचः सभायोग्याः याश्चित्ताकर्षणक्षमाः। स्वेषां परेषां विदुषाम् । द्विषाम विदुषामपि ।। [जो वचन अपनों के, परायों के, विद्वानों के, द्वेषियों के और मूखों के चित्त को आकर्षित करने में समर्थ हों, वे ही सभा के योग्य होते हैं] व्यंग करें, पर कोमल शब्दो में : एक राजा था. एक बार किसी युद्ध में उसे विजय श्री तो प्राप्त हुई, किन्तु उसमें एक वीर, जो उसके दाहिने हाथ के समान सहायक था, काम आ गया. जीत की खुशी के साथ उस वीर योद्धा सैनिक के वियोग का दुःख भी था, जो धीरे-धीरे मिट गया. उधर उस वीर सैनिक की विधवा पत्नी के पतिदेव के द्वारा संचित धन कुछ समय तक तो अपने बाल-बच्चों का भरण पोषण किया; परन्तु धन समाप्त होने पर आर्थिक सहायता For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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