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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मितभाषिता: एक मौन साधना ९३ सुनने के लिए राजसभा में राजा मौजूद ही नहीं रहते थे. लोग किसके सामने अपना दुखड़ा रोयें? यह समस्या खड़ी हो गई थी. मन्त्री ने महाकवि बिहारी को प्रेरित किया कि इस संकट में आप ही महाजनों की रक्षा कर सकते हैं. आप अपनी कवित्व शक्ति से राजा जयसिंह को समझा कर पुनः उन्हें राजसभा में आने के लिए तैयार कर सकते हैं. मेरी प्रार्थना है कि प्रजाहित के लिए आप इतना सा कष्ट उठाइये. बिहारी ने दो-तीन मिनिट गुनगुना कर एक दोहा रचा. उसे सुन्दर अक्षरों में एक कागज पर लिखकर मन्त्रीजी से कहा : " यह दोहा आप किसी के भी साथ अन्तःपुर में भिजवा दीजिये और फिर इसका प्रभाव देखिये. " मन्त्री ने वह कागज एक दासी के साथ अन्तःपुर में महाराज जयसिंह के पास भिजवा दिया. राजा जयसिंह ने कागज हाथ में लेकर वह दोहा इस प्रकार पढा : नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल । अली कली ही ते वन्ध्यो, आगे कौन हवाल ? [ इस समय कलिका (कली) पर न पराग है, न मीठा रस है और न उसका विकास ही हुआ है, फिर भी भौंरा उसी में बंध गया है- आसक्त हो गया है तो फिर आगे (कली के खिल जाने पर) भौंरे का क्या हाल होगा ? ] अन्योक्ति अलंकार के द्वारा इस दोहे में जो प्रतिबोध दिया गया है, उसे राजा जयसिंह तत्काल समझ गये. वे फिर से राजसभा में उपस्थित रहने लगे और प्रजाजनों की शिकायतों को ध्यान से सुनकर उन्हें मिटाने का प्रबन्ध करने लगे. इतना ही नहीं, अपने को पुनः कर्त्तव्य मार्ग पर आरूढ करने वाले महाकवि " बिहारी" को उन्होंने सन्मानपूर्वक अपने पास बुलवाया और उन्हें 'राजकवि” के पद पर प्रतिष्ठित किया. इस प्रतिष्ठा का सारा श्रेय उनके एक दोहे को ही तो है ! ज्ञान का प्रयोग जीवन में भी हो : इसी प्रकार एक बार आद्यशंकराचार्य स्नान करके अपने आश्रम को लौट रहे थे कि सड़क झाड़ने वाले एक भंगी (हरिजन) के शरीर से उनके शरीर का स्पर्श हो गया. शंकराचार्य चिल्ला पड़े :- “ अरे शुद्र ! क्या तू अन्धा है? मैं अभी नदी से स्नान करके चला आ रहा हूँ. तूने अपने गन्दे शरीर से छूकर मुझे अपवित्र कर दिया. अब मुझे दुबारा स्नान करना पड़ेगा. " For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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