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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२. जिनशासन के समर्थ उन्नायक चातुर्मास के पश्चात् पायधुनी स्थित मोतीशा द्वारा निर्मित ऐतिहासिक शान्तिनाथ जिनमन्दिर के जीर्णोद्धार की पुनः प्रतिष्ठा बड़े धूमधाम से कराई. साथ ही एक बाल मुमुक्षु की दीक्षा व आपके शिष्यरत्न पंन्यास प्रवर शान्तमूर्ति श्री वर्द्धमानसागरजी महाराज को महामहोत्सव पूर्वक आचार्य पद से अलंकृत करके अपनी पाट परंपरा के पट्टधर स्थापित किया. इस अवसर पर बृहन्मुम्बई के विविध जैन संघों को आपके पावन पदार्पण का लाभ मिला. साथ ही एकता लक्षी युवक महासंघ एवं जैन डॉक्टर्स तथा सी. ए. एवं व्यापारियों के संगठन गठित हुए. मुम्बई में अनेकविध धर्म-प्रभावक कार्यों को सम्पन्न कर आपने राजस्थान की राजधानी जयपुर के जवाहरनगर में नवनिर्मित जिनमन्दिर की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा हेतु प्रस्थान प्रारंभ किया. सुरत, बड़ौदा होते हुए अहमदाबाद पधारे. वटवा आश्रम (शान्तिधाम) में जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा आपकी निश्रा में सम्पन्न हुई. राजनगर से कोबा (श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र), गांधीनगर (बोरीज), उदयपुर, अजमेर होते हुए आप जयपुर पहुंचे. जयपुर के श्रीसंघ ने व राजस्थान के शासकों ने आपके प्रवेशोत्सव पर अभूतपूर्व स्वागत किया. अंजनशलाका-प्रतिष्ठा महोत्सव भी जयपुर के इतिहास में अमर बन गया. यह सब आपके दिव्य प्रभाव के फल स्वरूप ही हुआ. आपके कर्मठ जीवन का ज्वलन्त उदाहरण हमें श्रद्धावनत किये बिना नहीं रह सकता. अपनी अनुकूलता तो सभी देखते हैं परन्तु सामनेवाले की भावनाओं को ठेस पहुँचाये बिना उन्हें धर्म आराधना में स्थिर करना परोपकार की छोटी सी भी संभावना को नजर-अंदाज नहीं करना, ये हैं आपके उदात्त चरित्त के अवदात पक्ष. आचार्यश्री ने दीक्षा के बाद कभी भी किसी को भी धर्म कार्य के लिए अपने सहयोग से इनकार नहीं किया. हाँ निजी प्रतिकूलताओं को जरूर नजर-अंदाज़ किया है. ___ गांधीनगर के श्रीसंघ ने चातुर्मास हेतु जोर-शोर से आग्रह किया कि आपको हमारे संघ को इस बार यह लाभ देना ही पड़ेगा. गांधीनगर के श्रावकों का सौभाग्य है कि ऐसे महान् जैनाचार्य के चातुर्मास का धन्य अवसर प्राप्त हुआ. अपनी प्रतिकूलता का ख्याल तक नहीं करके आप For Private And Personal Use Only
SR No.008715
Book TitleJina Shashan Ke Samarth Unnayak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2001
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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