SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ पुत्र नटनी की भाव-भंगिमा एवं हाव-भाव देखने में तल्लीन था। खेल समाप्त हो गया। लोग बिखर गये । इलाची पुत्र घर आया परन्तु नटनी की आकृति किसी भी तरह उसकी दृष्टि से ओझल नहीं हुई। इलाची पुत्र न तो किसी के साथ हँसता था और न किसी के साथ वोलता था । उसका चेहरा उतर गया था । वह भोजन करने के लिए बैठा परन्तु किसी भी तरह कौर उसके गले न उतरा। धनदत्त ने इलाची को गुप्त रूप से बुला कर पूछा, 'क्यों? किसलिए उदास हो गया है?' 'कुछ नहीं, पिताजी!' कहकर इलाची ने बात समाप्त की परन्तु उसके पीछे उसे बहुत बहुत कहना था जो छिप नहीं सका। माता पुत्र के पास आई और सिर पर हाथ फिराते हुए कहा, 'पुत्र! चिन्ता मत कर, व्याकुल मत हो, जो हो वह कह दे।' इलाची पुत्र मौन रहा । माता ने बार बार पूछा तव वह वोला, 'माता! मैं कहूँगा तो आपको दुःख होगा; परन्तु तुम्हें जानना ही हो तो सुनो । अपने गाँव में नट आये हैं, उनमें एक नटनी नृत्य करती है। उसे मैंने जव से देखा तभी से मेरा मन मेरे वश में नहीं रहा । माता, क्या उसका रूप? क्या उसकी भाव-भंगिमा? मैं विवाह करूँगा तो उसी के साथ, किसी अन्य के साथ नहीं।' _ 'पुत्र! हम साहूकारों में कहाँ कन्याओं का अभाव है? सुशिक्षित, रूपवती देवाङ्गना तुल्य, तू कहेगा वैसी कन्या के साथ तेरा विवाह करूँगी। ऐसे घर-घर भीख माँगने वाले नट की पुत्री के साथ तू विवाह करे, यह क्या उचित है?' इलाची पुत्र मौन रहा। माता ने यह बात अपने पति को बतलायी। पिता ने भी इलाची को अनेक प्रकार से समझाने का प्रयत्न किया परन्तु उनके समस्त प्रयत्न निष्फल हुए। इलाची एकाकी रहने लगा। वह न तो खाता था और न किसी स्थान पर स्थिर रहता था। उसे नींद में भी नट-पुत्री के स्वप्न आते और उसी सन्दर्भ में प्रलाप करता रहता था। धनदत्त सेठ ने विचार किया कि 'लज्जा-लज्जा' करूँगा तो पुत्र खो वैलूंगा। उन्होंने नट को बुलाया और कहा, 'नटो! मेरा पुत्र तुम्हारी पुत्री देख कर मोहान्ध हो गया है। मेरे तो इकलौता पुत्र है | तुम कहो उतना धन दे दूँ। तुम अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र के साथ कर दो।'
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy