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________________ ७२ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ पर गिर गया । हे मेघकुमार! तू भूख-प्यास से चेतना-शून्य होकर मर गया और दया के पुण्य के कारण तू श्रेणिक राजा के घर उत्पन्न हुआ । उस समय तू पशु था, आज तू मानव है। तेरा पुरुपार्थ, तेरा पराक्रम, तेरा बिवेक और तेरी समझ आज अधिक है। तुने हाथी के भव में आकर शक्ति बताई थी, वही तु ऐसे एक दिन की पवित्र मुनियों की अज्ञात ठोकरों से विचलित हो जाये, यह क्या उचित है।' मेघकुमार को जातिस्मरण ज्ञान हुआ । वे संयम में अत्यन्त सुदृढ़ हो गए. तप-त्याग में लीन हो गए और नेत्र की पलकों के अलावा पूरी देह वैयावच्च में समर्पित करके आराधना पूर्वक संयम का पालन करके अनुत्तर विमान में गएँ। भगवान भी इस प्रकार अनेक जीवों के जीवन-रथों को सच्चे मार्ग पर मोड़ कर 'धर्मसारथी' कहलाये। (त्रिपप्ठिशलाका से) Kamals RA NAL हे मेयकुमार! भयंकर दावानल से बचने के लिए जंगल के प्राणी परस्पर वैर भूल कर तेरे मंडल में आए. उस समय तूने खरगोश को बचाने के लिए अपना पैर ऊंचा रखा.
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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