SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ उत्तराध्ययन, ऋपिमण्डल वृत्ति आदि अनेक ग्रन्थो में गाये गये । आज तो अरणिक मुनिवर अथवा भद्रा माता नहीं हैं, परन्तु सहस्त्रों भक्तों की जवान पर उन दोनों के नाम सज्झाय के द्वारा रटन होते हुए जगत् में अपने गुण-कीर्तन से अमर हैं। आइये, हम भी उनका गुण-गान करें अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी, तड़के दाझे शीशो जी। पाय अडवाणे रे वेलु परजले, तन सुकुमाल मुनिशोजी ।। मुख करमाणु रे मालती फूलज्यु, ऊभो गोख नी हेठो जी। खरे वपोरे रे दीठो एकलो, मोही मानिनी दीठो जी ।। वयण रंगोले रे नयणे वींधीयो, ऋषि धेभ्यो तेणे ठाणोजी । दासी ने कहे जा रे उतावली, ऋपि तेडी धर आणोजी ।। पावन कीजे रे ऋषिघर-आंगणुं, वोहरो मोदक सारो जी। नब जोवन रस काया कां दहो, सफल करो अवतारो जी।। चंद्रवदनीये चारित्र थी चूकव्यो, सुख विलसे दिन-रातो जी। बैठो गोखे रे रमतो सोगठे, तब दीठी निज मातोजी।। अरणिक अरणिक करती मा फरे, गलिये गलिय वजारो जी। कहो केणे दीठो रे म्हारो अरणियो, पूंठे लोक हजारो जी ।। हुँ कायर छु रे म्हारी मावडी, चारित्र खांडा नी धारो जी। धिग धिग विषया रे माहरा जीवने, में कीधो अविचारो जी।। गोख थी उतरी रे जननी ने पाय पड्यो, मनशुं लाज्यों अपारो जी। वत्स तुझ न घटे रे चारित्र थी चूकवू, जेहथी शिव सुख सारो जी।। एम समजावी रे पाछो वालियो, आण्यो गुरु नी पासे जी। सतगुरु दिये रे सीख भली परे, वैरागे मन वासो जी ।। अग्नी धिखंती रे शिल्ला ऊपरे, अरणिके अणशण की जी। 'रूपविजय' कहे धन्य छ मुनिवरू, जेणे मनवंछित लीधुं जी ।।
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy