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________________ ४२ सचित्र जैन कथासागर भाग 1 १ (५) पूर्व भव में लक्ष्मीपुर नगर में राम, वामन और संग्राम नामक तीन मित्र थे । साधु पुरुष के मन, वचन और काया में एकता होती है उसी प्रकार वे तीनों एकता वाले थे। सबकी आयु समान थी, जाति समान और रहन-सहन भी समान था । लगभग चौदह वर्ष की आयु में वे तीनों उद्यान में गये और वहाँ उन्होंने एक मुनि को ध्यानस्थ देखा । तीनों ने भावपूर्वक उनको वन्दन किया, परन्तु वन्दन करते समय वामन की पीठ पर जल की एक बूँद गिरी । जब उस वामन ने ऊपर देखा तो मुनि की आँख में काँटा दिखाई दिया। आँख में पीड़ा होते हुए भी मुनि अविचलित दिखाई दिये । वामन ने मित्रों को कहा, 'मुनिवर की आँख में काँटा है उसे निकालना चाहिये, परन्तु मैं छोटे कद वाला उसे कैसे निकालूँ ?” राम ने कहा, 'काँटा निकालना हो तो मैं घोड़ा बनता हूँ। तू मुझ पर चढ़ कर सुविधापूर्वक काँटा निकाल ले । तू अपने छोटे कद का पश्चाताप क्यों करता है? मेरी पीठ पर चढ़कर तू ऊँचा हो जा।' इतने में संग्राम वोला कि, 'ऊपर चढ़ने में तुझे सहारे की आवश्यकता पड़े तो मेरे हाथ का सहारा लेना, घवराता क्यों है ? तुरन्त राम नीचे झुका और वामन संग्राम के हाथ का सहारा लेकर उस पर चढ़ गया और काँटा खींच निकाला, परन्तु मुनि की देह मलिन होने के कारण उसने मुँह हरि सोमपुरा राम नीचे झुका और वामन संग्राम का सहारा लेकर उस पर चढ़ गया और कांटा खींच निकाला ।
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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