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________________ सुनन्दा एवं रूपसेन ३३ वह तीर सीधे कौए को न लग कर विचारे रूपसेन के जीव उस हंस के लगा, जिससे तत्काल उसकी मृत्यु हो गई और वह एक जंगल में हिरन के रूप में उत्पन्न हुआ । एक घोर वन में सुनन्दा एवं राजा के समक्ष कुछ संगीतज्ञ सुन्दर गीत गा रहे थे । वन के अनेक पशु एकत्रित हुए और सभी संगीत में तन्मय हो गये । राजा ने संगीत रुकवा दिया जिससे तत्कास सभी पशु भागने लगे, परन्तु एक युवा हिरन तनिक भी नहीं हटा। राजा को हिरन वडा सुन्दर लगा। उसने उसका वध कर दिया और राज प्रासाद में भेज दिया । रसोइये ने उसका संस्कार करके उसका माँस पकाया और राजारानी दोनों ने साथ बैठ कर उसका भक्षण किया और प्रशंसा करते रहे कि हिरन का माँस तो अनेक बार खाया है, परन्तु ऐसा स्वाद कभी नहीं आया । (19) उफ! 'बिना खाये, बिना भोगे भी पूर्व भव के कर्मों से संसार में जीव उफ! कितने अपार कष्ट भोगते हैं । इस हिरन के जीव ने रूपसेन के भव में विषय-सुख का उपभोग नहीं किया, फिर भी यह पाँच भवों तक कितने कष्ट भोग रहा है? जिस स्त्री के लिए यह लालसा रखता था, वह स्त्री तो अत्यन्त हर्ष के साथ उसका माँस खा रही है' यह वात- वहाँ होकर गुजरने वाले दो मुनियों में से एक ज्ञानी मुनि ने सिर हिलाते हुए अपने साथी मुनि को कही । राजा-रानी को मुनियों की पारस्परिक वात में सन्देह हुआ और राजा ने तुरन्त खड़े होकर मुनि को कहा, 'महाराज! आपने हमारे समक्ष सिर हिलाया उसका कारण क्या?" 'कुछ नहीं, संसार की विचित्रता देखकर हमने सिर हिलाया है' मुनि ने गम्भीर होकर कहा । 'हम माँस खा रहे हैं यह देखकर घृणा से तो आपने सिर नहीं हिलाया न ?' राजा ने पूछा । 'राजन् ! मेरे सिर हिलाने का कारण यह है कि विषय-कपाय के वशीभूत होकर जीव केवल चिन्तन करने मात्र से, पाप के दुर्ध्यान से संसार में निगोद तुल्य अनेक भव करके अत्यन्त दुःख प्राप्त करते हैं । ' 'क्या आपको यहाँ ऐसा कुछ प्रतीत हुआ ?' राजा ने बात जानने की इच्छा से कहा । 'राजन्! संसार में भटकते हुए जीव सर्वत्र विचार मात्र से बिना खाये, बिना भोगे अनेक पापों का संचय करते हैं, यह मैंने यहाँ प्रत्यक्ष देखा ।' 'महाराज ! आपने जो देखा वह हमें बताओ तो हमारा कल्याण होगा, इस प्रकार सुनन्दा ने आग्रहपूर्ण निवेदन किया । 'मैं बता दूँ परन्तु तुम लोग उससे अप्रसन्न तो नहीं होओगे ?"
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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