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________________ (३) पाप ऋद्धि अर्थात् ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती (१) 'दासौ मृगी मराली चाण्डालौ त्रिदशौ ततः' - इस श्लोक की जो वास्तविक पादपूर्ति करेगा उसे महाराजाधिराज श्री ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती अपना आधा राज्य देंगे। इस प्रकार की घोषणा पुरिमताल नगर के प्रत्येक चौराहे पर हो रही थी । जंगल में चलता हुआ कृपक, गली में खेलने वाले वालक, भैंसे चराने वाला चरवाहा सभी लोक उक्त पद बोलते जाते थे और अपना कार्य किये जा रहे थे। एक दिन मैले-कुचैले वस्त्र पहना हुआ एक कृषक राज्य सभा में आया और चक्रवर्ती के समक्ष बोल उठा 'एषा नौ पष्ठिका आयातिऽन्यं वियुक्तयोः '; चरण को ठीक मिलता हुआ देख्ख कर राजा खड़ा होकर उसको गले लगाने के लिए तत्पर हुआ तो कृषक वोला, 'महाराज ! मैं अपने खेत में क्यारी बना रहा था और 'दासौ मृगौ' चरण बोल रहा था, इतने में कायोत्सर्ग ध्यानस्थ मुनि अपना कायोत्सर्ग ध्यान पूर्ण करके 'एपा नौ पष्टिका' चरण वोले और वही चरण मैंने आपके समक्ष निवेदन किया है। राजाने सभा विसर्जित की और वह सीधा उद्यान में पहुँचा। वहाँ जाकर मुनि के चरण स्पर्श किये और वोला, 'वन्धु ! सम्पूर्ण सभा में महक फैलाते हुए एक बार मैंने एक पुष्मकन्दुक देखा । अत्यन्त विचार करते-करते मैं अचेत हो गया और सौधर्म देवलोक के भव सहित अपने पाँचों भवों की स्मृति मेरे मस्तिष्क में जाग्रत हो गई। कुछ समय में चेतना आने पर सोचा कि मेरा पाँच भवों का साथी वन्धु कहाँ चला गया ? अब उसे मैं कहाँ खोजूँ ? ऐसा विचार करते-करते आपको खोजने के लिए 'दासौ मृगौ' पद का प्रचार किया और आप से मिलाप हुआ । बन्धु ! इस राज्य लक्ष्मी के आप वन्धु वन कर सहभागी बनो।' मुनिवर ने कहा, 'राजन् ! यह तेरी ऋद्धि तुझं भव-भव भटकाने वाली है। सच्ची ऋद्धि तो ज्ञान, दर्शन और चारित्र की है ।' महाराज ! राज्य की ऋद्धि के लिए तो लोग परस्पर युद्ध करते हैं और भाग्य के विना संसार की यह कोई ऋद्धि थोडे ही प्राप्त होती हैं ? राजन्! अच्छी तरह सोच ले । तुम्हें आज जो चक्रवर्ती का पद प्राप्त हुआ है, उसके पीछे तुम्हारे द्वारा पूर्व भव में किया गया तपो वल कारण है । जाति-स्मरण ज्ञान से
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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