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________________ १०० सचित्र जैन कधासागर भाग - १ (२) गोभद्र ने देवगति प्राप्त करके जव अपने पूर्व भव का स्मरण किया तो उन्हें शालिभद्र का स्मरण हुआ । उसके प्रति उनका मोह जाग्रत हुआ । धन-वैभव से सम्पन्न धर फिर भी सुकोमल पुत्र भोला शालिभद्र मानव-जीवन की नित्य शीर्ण-विशीर्ण होने वाली सामग्रियों की प्राप्ति के लिए क्यों प्रयत्न करें? मैं उसे मनुष्य-भव में देव जैसा सुख क्यों न प्रदान करूं? उसने तैंतीस पेटियाँ तैयार करवाई ! उनमें प्रत्येक में तीन-तीन विभाग किये । एक में आभूषण, दूसरे में सुन्दर बस्त्र और तीसरे में अमृत-रस का स्मरण कराये ऐसी मधुर मिष्ठान | नित्य ये तैंतीस पेटियाँ शालिभद्र के आवास पर आती और बत्तीस पत्नी तथा तैंतीसवें शालिभद्र उनका उपभोग करते। आज के वस्त्र कल नहीं, आज के आभूपण कल नहीं, ऐसा वैभव था शालिभद्र का। ये उतरे हुए आभूपण एवं वस्त्र फैंकने के लिए दो कुंए रखे, ताकि जो उतरें वे सब उनमें फैकी जा सके। (३) 'लो कम्बल, लो कम्बल' की टेर लगाते हुए चार नेपाली व्यापारी राजा श्रेणिक के महल के पास होकर निकले । महारानी चेलना ने उन्हें रोक कर एक कम्बल का मूल्य पूछा। ‘राजमाता! ये रत्न-कम्बल हैं । इन में से प्रत्येक का मूल्य सवा लाख रचर्ण-मुद्रा है । ये वर्पा से भीगते नहीं हैं, प्रीष्म-ऋतु में शीतलता प्रदान करते हैं और शीतकाल में उप्णता प्रदान करते हैं। ये अग्नि में जलते नहीं, तीनों ऋतुओं के रोग नष्ट करते हैं और सदा शुद्ध रहते हैं' - कम्बल का महत्त्व समझाते हुए वृद्ध व्यापारी ने कहा। रानी कम्वल क्रय करने की माँग करे उससे पूर्व ही श्रेणिक ने व्यापारियों को कहा, 'भाई! कम्वल में गुण तो होंगे परन्तु पहनते ही ग्वालों जैसा प्रतीत हो वह रत्न-कम्बल सवा लाख स्वर्ण-मुद्राओं में खरीदने की अपेक्षा उतन मूल्य में पुरुष-रत्न क्यों न रखें जो अवसर पर मार्ग निकाले ?' ___ व्यापारियों ने गठरी वाँधी और वहाँ से तनिक दुर जाने के पश्चात् एक व्यापारी वोला, राजगृही का राजा रत्न-कम्बल नहीं खरीद सका तो दूसरा कोन खरीदने वाला है?' दूसरा व्यापारी बोला, 'धनवानों की नगरी है, राजा न ले और कोई सेठ खरीद ले।' ये शब्द निचली मंजिल के झरोखे में बैठी भद्रा सेठानी के कानों में पड़े। सेठानी ने दासियों के द्वारा व्यापारीवों को बुलवाया और पूछा, 'क्या बंचने आये हो?'
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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