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________________ ९६ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ जा रहा था, जिसमें घोषणा की जा रही थी कि सरोवर के तट पर खड़े रह कर सरोवर के मध्य स्थित खम्भे को जो गाँठ लगा दे, उसे राजा मंत्री बनायेंगे | धन्यकुमार ने उक्त गाँठ लगा दी। उसने ऐसा किया कि सरोवर के तट पर स्थित एक वृक्ष से रस्से का सिरा बाँध दिया और दूसरे सिरे को हाथ में रख कर सम्पूर्ण सरोवर के तट पर फिरा । तत्पश्चात् वृक्ष से बँधा सिरा खोल कर उसका फन्दा बनाकर उसमें दूसरा सिरा पिरो दिया और आमने-सामने खींचा, जिससे रस्सी की गाँठ खम्भे के लग गई धन्यकुमार उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत का मंत्री बन गया । एक दिन धन्यकुमार अपने महल की अटारी पर बैठा था। उस समय उसने दीनहीन दशा में अपने परिवार को दूर से आता हुआ देखा । वह तुरन्त नीचे उतरा और अपने परिजनों को ले आया। उन्हें घर, वस्त्र, आभूपण आदि सब दिये और पूछा कि, ‘ऐसा कैसे हो गया?' धन्य के पिता ने कहा, 'तू घर से चला गया यह वात जव राजा को ज्ञात हुई तब उसने हमें धमकी दी और धन-सम्पत्ति छीन कर हमें निकाल दिया।' कुछ ही दिनों के पश्चात् यहाँ भी भाईयों ने उपद्रव किया अतः भरा-पूरा घर छोड़ कर धन्य वहाँ से निकल पड़ा और जा पहुँचा राजगृही नगरी में। राजगृही का राजा श्रेणिक था । चारों ओर उसकी ख्याति थी परन्तु उसका एक भारी कष्ट यह था कि अभयकुमार जैसा मंत्री राजगृही छोड़ कर चण्डग्रद्योत के राज्य में - - ~ WHAT D हरिमामारा किसानने कहा, भाई! ये चरु तुम्हारे हं! धन्ना ने कह्म, नहीं, भाई! खेत तुम्हारा है और धन मेरा कहाँ से?
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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