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________________ ८० सचित्र जैन कथासागर भाग - २ कार्य के समय भी उसके दर्शन करने से चूकते नहीं थे। एक बार रथ-वाड़ी से हाथी पर सवार होकर लौटते समय वे शान्तुवसही आये। कदम-कदम पर घंटियों का नाद करता हाथी खड़ा रहा। वे हाथी से नीचे उतरे और जब जिनालय के द्वार में प्रविष्ट होने लगे तब निकट के एक कोने पर खड़े एक युवा साधु पर उनकी दृष्टि पड़ी। वह सुन्दर शृंगार की हुई, कजरारे नेत्रों वाली एक रूपवती वेश्या के कन्धे पर हाथ रख कर मुक्त हास्य कर रहा था। शान्तु मंत्री ने उस साधु को अच्छी तरह देखा परन्तु साधु की दृष्टि उन पर नहीं पड़ी। मंत्री ने तुरन्त उत्तरीय ऊपर-नीचे किया और उसके समीप जाकर गौतम स्वामी को वन्दन करते हैं उसी प्रकार विनय पूर्वक उस साधु को ‘इच्छामि खमासमणो वंदिउं' कह कर वन्दन सूत्र बोल कर वन्दन किया । वेश्या के साथ छेड़ छाड़ करने वाला साधु बिजली गिरने से मनुष्य चौंक जाये उसी प्रकार ये शब्द सुनकर तुरन्त स्थिर हो गया। मंत्री ने स्वामी शाता है जी' कहा। साधु ने सिर हिलाया परन्तु उसके हृदय में से शान्ति कभी की लुप्त हो चुकी थी। साधु विचार करे उससे पूर्व तो वन्दन पूर्ण करके 'मत्थएण वंदामि' कह कर मंत्री चले गये। ___शान्तु मंत्री ने साधु को आक्रोश पूर्ण वचनों में नहीं कहा कि 'महाराज! आप जैन साधु हैं अथवा कौन? आपको जिनालय में रहने दिया है वह क्या ऐसे पाप करने के लिए? चले जाओ, हमें तुम्हारी आवश्यकता नहीं है।' तथा मधुर वचनों से 'महाराज! आपकी लघु वय है। आपको लोग उत्तम साधु मानते हैं और आप इस प्रकार वेश्या 1411 MONDITION HTTAHDHINITWITSUPRETIKHABAR साधु की लज्जा से उसकी कुलीनता भांप कर महामंत्री शातु ने विधि पूर्वक बंदन कर पतन से उत्थान की ओर उनकी गाडी मोड दी! धन्य हो ऐसे गीतार्थ श्रावक को!
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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