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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गरुवाणा कि भाई हम भी उसी स्थान पर जाने वाले हैं तो मेरे साथ चलो. मुझे विश्वास हो गया कि गलत आदमी नहीं है. ___मैने कहा कि भाई सुबह ज़रा जल्दी चलना होगा, काफी लम्बा है, यहां से करीब अठारह-बीस किलोमीटर है, महाराज मैं आपके साथ हं. एक सीधा रास्ता मैं आपको बतलाऊंगा - यह रास्ते का चक्कर मिट जायेगा. बड़ी प्रसन्नता हुई. मैंने कहा कि परमात्मा की बड़ी कृपा. घर तक यह आदमी आ गया. लोगों से कहा तो लोग भी बड़े खुश हए. फाल्गुन का महीना था, गर्मी बड़ी तेज़ थी, रात्रि में मैंने उसे पास में रखा और दो-तीन आदमियों से कहा कि भाई इसका ध्यान रखना प्रलोभन देना, कहीं यह चला न जाए. सुबह हम चल पड़े. वह आगे-आगे और हम पीछे-पीछे. अब रास्ते में हम आगे बढ़ने लग गए. सड़क छोड़कर के हम नीचे उतरे तो धोरा, रेती एक-एक बेंत पांव अन्दर जाएं. श्रम इतना पड़ा कि मेरे मन में विचार आया कि यह लोभ तो बड़ा गलत रहा. वही रास्ता ठीक था. यहां तो अधिक श्रम पड़ता है. वहां तक पहुंचते-पहुंचते तो पानी उतार देगा. हम चलते रहे, घण्टा-दो घण्टा निकला. हर व्यक्ति में मानसिक उत्सुकता होती है, मैंने उससे पूछा कि भले आदमी अब गांव कितनी दूर है. बोला कि डेढ़ कोस है. फिर मैं चलता रहा. घण्टा भर निकला और सूर्योदय हो गया. मैंने कहा कि भले आदमी अब कितना है. बोला कि डेढ़-दो कोस और दूर है. मैंने कहा ठीक, पहले भी यही और अब भी यही. थोड़ा दूर चले और आधा घण्टा निकला, फिर उससे पूछा --- अशिक्षित व्यक्ति था, सच-सच बताओ कि अब कितनी दूर है? बोलने लगा कि एक-डेढ कोस और है. ठीक है, अपनी भाषा में कहा कि गांव तो सामने ही है डेढ-दो कोस. ____ मैंने उसको पकड़ा और कहा कि पहली बार पूछा तो एक-डेढ़ कोस, दूसरी बार पूछा तो भी डेढ कोस, तीसरी बार पूछा तो भी डेढ़ कोस - और कुछ शब्द आता है कि यही आता है. __ मैं चल रहा हूं कि खड़ा हूं, यह बताओ? अंगूठा छाप आदमी था, गंवार था, जाट था वहां का और बोला कि महाराज! साधु-संत तो शान्त होते हैं, आप गुस्सा क्यों करते हैं? पहले तो मुझको उपदेश दिया. ____ मैंने कहा यह जो आवेश आया, यह तुम्हारी कृपा से आया. तुम्हारे प्रति तिरस्कार नहीं है, अरुचि नहीं है, पर मैं जानना चाहता हूं कि गांव कितनी दूर है और तुम सच बोलते नहीं, जब पछता है - डेढ-दो कोस, डेढ-दो कोस. मैंने तीन-तीन बार. चार-चार बार पूछा, हमारे साथ इतने सारे आदमी हैं – भूख बढ़ रही है, प्यास बढ़नी शुरू हो गई, मुकाम नहीं आया तो मुश्किल खड़ी हो जाएगी. 70 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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