SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी आत्म-विकास के सोपान : परोपकार और प्रेम परमकृपाल परमात्मा जिनेश्वर ने जगत के प्राणिमात्र के लिए धर्म प्रवचन द्वारा लोगों का महान उपकार किया. प्रवचन के द्वारा यदि जीवन का सुन्दर मार्गदर्शन उपलब्ध हो जाये, इसके श्रवण से जीवन का परिवर्तन हो जाये तो सारी साधना सफल हो जाए. प्रवचन परिवर्तन के लिए है. प्रवचन आत्मा की पवित्रता को प्राप्त करने का एक परम उत्कृष्ट साधन है. अन्तः प्रेरणा से ही व्यक्ति प्रवचन श्रवण में प्रवृत्त होता है क्योंकि परमात्मा के ये प्रवचन प्राणिमात्र के कल्याण की कामना से ही उनके अन्तस्तल में उद्भूत हुए हैं. यदि भावपूर्वक उसे ग्रहण किया जाये तो संसार के समस्त बन्धनों से आत्मा मुक्त हो जाये, परमात्मा के प्रवचन श्रवण करने का परिणाम – संसार की समस्त वासनाओं के बंधन से आत्मा की मुक्ति है. किसी व्यक्ति को यह नहीं पता कि हम कहां जा रहे हैं? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है? हमारा ध्येय क्या है? किस प्रकार का मैं कार्य करूं कि मेरा भविष्य उज्ज्वल बने और मैं अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकँ? आज तक अपने जीवन का कोई लक्ष्य हमने निश्चित नहीं किया है. सारा जीवन अस्त-व्यस्त हो चका है. इसीलिए मैं यही कहँगा कि त हो चुका है. इसीलिए मैं यही कहूँगा कि मकान या मन्दिर का जीर्णोद्धार तो बाद में होगा. सर्वप्रथम जीवन का जीर्णोद्धार करें. जीवन का नवनिर्माण प्रारम्भ करें. पहले अपने अन्दर में यह पिपासा जागृत करें कि आप. स्वयं को पहचान सकें ताकि आप अपने जीवन-लक्ष्य का भेदन कर सकें.. एक बहुत सुन्दर मन्दिर का निर्माण कार्य चल रहा था. वहाँ रास्ते से कोई संत जा रहे थे. संत ने एक व्यक्ति से पूछा कि भाई क्या कर रहे हो? उस व्यक्ति ने बड़ी सहजता में जवाब दिया कि पत्थर तोड़ रहा हूं. बड़ी मुसीबत है, पेट की समस्या से ज्यादा नहीं सोच पाता. किसी भी प्रकार पत्थर तोड़ करके, मजदूरी करके अपना जीवन-निर्वाह कर रहा हूं. संत थोड़ा आगे गये और एक दूसरे व्यक्ति से पूछा कि भाई क्या कर रहे हो? उसने कहा कि महाराज एक मंदिर का निर्माण कर रहा है. पसीना बहा करके पैसा पैदा करता हूं और परिवार का निर्वाह तथा भरण-पोषण कर लेता हूं, उससे आगे गये, एक व्यक्ति से पूछा कि भाई तुम क्या कर रहे हो? उसने कहा कि महाराज जी मैं भगवान का निर्माण कर रहा हूं, अपने विचार के सारे सौन्दर्य को इस पत्थर के अन्दर आकार दे रहा हूं, ताकि इसमें प्राण आ जाए, सौन्दर्य आ जाए. जगत् की आत्मा आ करके यहां परम शान्ति का अनुभव कर सके. मेरे जीवन का यह लक्ष्य है कि मैं सारी सन्दरता इसके अन्दर समाविष्ट कर दूं. मैं इस पत्थर में अपने विचार को एक सम्पूर्ण आकार देना चाहता हूँ. -- 62 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy