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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी 0 ( - . भगवान के घर में कोई चीज छिपी नही है. फिर अपराध होगा. फिर दोषी बनेंगे. हमारी आदत बड़ी खराब है. रिमांड पर लेते हैं न पुलिस वाले. चोर को जब मारा जाता है, पूजा उतरती है तो क्या बोलता है, कभी चोरी नहीं करूंगा. कभी भूल नही करुंगा. हमारी भी ऐसी आदत बन गई है कि जब कर्म की मार पड़े तो भगवान के पास दौड़े. भगवान कभी ऐसा नहीं करता जैसे ही वहां रिमांड में से छटे, परमात्मा की दया से बच गए, फिर भगवान को ही भूल गए. उपाश्रय भूल गए. महाराज को ही भूल गए. सब भूल गए, फिर कर्म की मार पड़े तो सीधे ही यहां, यह हमारी आदत... .. मैं कहा करता हं आप बुरा न मानना, ये सब गनहगार हैं. भल करते हैं फिर यहां आते हैं. गुनहगार की; बार बार कर्म राजा रिमांड पर लें और मार खाएं. फिर परमात्मा के द्वार पर दया की भीख मांगने के लिये आये. आदत बदल लीजिए वैर और कटुता को छोड दीजिए. प्रेम और मैत्री से पूर्ण बन जाइये. सजा से मुक्त बन जाएंगे. यह सब इन्द्रियों का तूफान है. सेठ मफत लाल एक तोता लेकर आया. तोता बड़ा सुन्दर था, बड़ा समझदार था, मफतलाल उसे खरीद लाए. बड़ा शौक था. कई व्यक्तियों को बड़ा शौक होता है, परन्तु वे भूल जाते है कि किसी को बन्धन में रखकर यदि मैं आनंद लूं तो यह बन्धन मेरे लिए भविष्य का बन्धन बनेगा. आदत, आपको बड़ा प्रिय लगता है, आवाज कान को बडी प्रिय लगती है. वह तोता तो ले आया. संयोग वहाँ पर गुरु महाराज का आना जाना, साधु भगवन्त आहार के लिए. आए भिक्षा के लिए आए. महाराज ने देखा यह अच्छी चीज नहीं है, श्राविका से कहा, बच्चो से कहा, बन्धन रखना, यह श्रावक का आचार नही है, अतिचार लगता है. साधु भगवन्तों के आने जाने से उस तोते को जातिस्मरण का ज्ञान हो गया. पूर्वकर्म का भय उसकी स्मृति में आ गया. आपने पढ़ा होगा कि हमारे कार्यकर्ता सिद्धराज ढड्डा जो स्वर्गीय गुलाब चन्द जी ढड्डा के सुपुत्र हैं. उनके जीवन की एक यातना है. छपी हुई एक घटना है. यह सत्य घटना है. वे पालीताना शत्रजय यात्रा में गए थे. ऊपर चढते समय जो पालीताना मन्दिर आता है, किसी कारण से एक तोता घायल हो गया. जमीन पर पड़ा था. मरा नहीं था. गुलाब चन्द जी पूजा करने जा रहे थे. हाथ में उस तोते को लिए, पानी डाला, सूत्र सुनाया, उनके हाथ में ही तोता मर गया. जो क्रिया करनी थी, एक रात जा कर आए. ___ कुछ वर्ष बाद यही सिद्धराज जी जब पांच छ: वर्ष के थे, गुलाब चन्द की यात्रा करने .प्रति वर्ष जाते. उसे लेकर गये. सिद्धराज ढड्डा ने अपने मुंह से कहा-पिता जी यह जगह तो मेरी देखी हुई है. मैं तो यहां आया हूं और आपके हाथ में ही मरा हूं. वही तोता मर करके उनका पुत्र बना, वही आज के सिद्धराज ढडडा. - जन 371 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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