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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी है और मोक्ष गति देती है. चित की समाधि देने वाला परमात्मा के नाम क्रम में ऐसा चमत्मकार है जिसके द्वारा नाम लेते ही आत्मा को शान्ति और समाधि मिले. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतीक्षा करनी पड़ी. उसके आने जाने में तकलीफ पड़ने लग गई, शरीर क्षीण हो गया, शक्ति नहीं रही. दीवाली के बाद में स्वयं उसके घर जाता, मैंने देखा इसको किसी भी तरह से समाधि मिले, रोज वहां मंगली सुनाने जाता. तीन माले चढ़ता और उतरता, परन्तु किसके लिए? एक जीव के लिए, संतोष मिले, उस आत्मा को आज उसकी मृत्यु समाधिमय हो. , रोज जाता, रोज उसको जगा करके आता सावधान करता मैंने अपनी माला दी कि मेरी माला है, तुम गिना करना, पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति अपने सामने टेबल पर रखा. रोज सुबह से शाम तक जब भी जागृत रहना, माला और भगवान पार्श्वनाथ की तरफ दृष्टि, परिवार में नही, पुत्री में नहीं, किसी भी तरह का मोह गया नहीं, उसको स्नान करा देते, नर्स रखी थी. कपड़ा पहन लेता और वही माला. जो थोड़ा बहुत खाया जाए, खाए. मुझे एक दिन उसने कहा- महाराज आशीर्वाद दीजिए, आरती उतारता हूं तो एक गिलास आंसू निकलता है इतना दर्द आशीर्वाद दीजिए, जल्दी मेरी मौत आ जाए. मैंने कहा- घबराने से काम नही चलेगा. मोर्चा तुम्हारे हाथ में है. जरा मजबूत और सावधान रहना, मौत का प्रतीकार करना है. मुकाबला करना है. मौत भी एक बार विचार में पड़ जाए कि कहां आ गई. रवीन्द्र नाथ टैगोर के अंतिम समय जिस दिन मृत्यु होने वाली थी, उसी दिन अपने अन्तर हृदय से परमात्मा को निवेदन किया कि भगवान मेरी अंतिम प्रार्थना स्वीकार करें. यहां पर मैं तेरे द्वार पर मौत से बचने की याचना लेकर नही आया, जगत से भागकर कायर बनकर मैं तेरे द्वार पर भीख मांगने नहीं चाहे कैसा भी कर्म का आक्रमण हो जाए, मृत्यु का मुकाबला करना पड़े, भगवन्! तू सहन करने की शक्ति दे. उनकी गीतान्जली में आप पढ़ना, उन्होनें अपनी प्रार्थना में लिखा- मेरे अंतिम समय मौत जब सामने आई वे कहते हैं अपने साथियों को भई मैनें आज तक सब कुछ तुझे लुटाया है, सब कुछ साथियों को दिया है, अब मेरे पास देने को कुछ भी नही रहा और मौत अपनी झोली लेकर के आई है. उस झोली को खाली कैसे भेजा जाए. मैंने आज सोच लिया कि अपना जीवन उस मृत्यु की झोली में दे दूं. ताकि वह खाली हाथ वहां से न लौटे, मरने के दिन उनके ये अंतिम शब्द थे. कैसी मृत्यु सरल और सदाचारी आत्मा के जीवन में मौत भी सीधी और सरल हो जाती है. मैंने उसको इतना सावधान किया, उसका परिणाम दूसरे दिन उसकी हालत बिगड़ गई. बैठा था सामने परमात्मा की वह मूर्ति, परर्श्वनाथ भगवान की ओर मेरी दी हुई माला 369 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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