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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी की. कितनी जल्दी भूल जाता है निर्दोष बन जाता है. उस समय भौंकेगा. आपकी उत्तेजना से उस समय उसमें भी गर्मी आ जाएगी. थोड़े समय बाद आप घर पर आएं, वहीं कुत्ता सब भूल कर के आपका पांव चाटने के लिए आता है. कभी आप देखना, सब भूल जाता है, निर्दोष बन जाता है. जैसे कुछ भी इसने मेरे साथ नहीं लिया, कोई पूर्व का लक्षण नहीं. अगर कुत्ते जैसा लक्षण भी आ जाए तो संवत्सरी सफल हो जाए. हम भूलते नहीं, गांठ बांध रखते हैं. कोर्ट तक जाते हैं, वर्षों तक ये संस्कार लेकर जाते हैं. कैसे आत्म कल्याण होगा. यह निकृष्ट प्राणी कुत्ता वह भी आपके व्यवहार को भूल जाता है कि सुबह इसने मुझे डण्डा मारा, मेरा अपमान किया, सब भूल जाता है. आप भूलना सीखिए. बहुत सी बातें तो भूलने जैसी हैं. भूल गए तो आपकी साधना में चमक आ जाए. लेकिन, हम याद रखते हैं, यही सबसे बड़ी गलती है. साध कहता है-भई मेरी अवस्था ऐसी है. मैं क्या बतलाऊं? यह बाल्यावस्था बडी निर्दोष अवस्था थी. परमात्मा के प्रतीक जैसा मेरा हृदय था. पारदर्शक मेरा हृदय था. किसी के प्रति कटुता, बैर, विरोध नहीं था. पिछली भी अच्छी. बुढापा आ जाये, इन्द्रियां शिथिल हो जाएं, पाप का प्रवेश द्वार ही बन्द हो जाए. पाप करने की ताकत ही न रहे, निर्दोष बन जाओ, सभी व्यक्ति दया दृष्टि से देखें. बूढ़ा व्यक्ति है, इसकी इज्जत करो. इसको सहयोग दो, क्योंकि वह कोई पाप तो कर नहीं सकता. पर विवश होता है, शारिरिक लाचारी होती है. इन्द्रियां शिथिल बन जाती हैं, पाप करने में असमर्थ बन जाती हैं. वह अवस्था भी बड़ी अच्छी. जीवन का अनुभव कई बार रक्षण का काम करते हैं. “अगली भी अच्छी." ___ यह बिचली अवस्था, पच्चीस से चालीस की अवस्था बड़ी खतरनाक है. इसलिए मंत्र जाप करते समय जोर से बोलता हूं. ___ "अगली भी अच्छी, पिछली भी अच्छी, बिचली को जूते की मार” इस अवस्था को जूते की मार, ताकि इन्द्रियां सीधी रहें. और विषय का दमन होता रहे, यह विषय उत्तेजित न हो जाएं. ये तीन दिन का उपवास जूते की मार है. और कुछ नहीं, ये सारी इन्द्रियां बडी खतरनाक हैं. सब सीधी हो जाएंगी. निर्विकारी बनने के लिए तप की आराधना है. पूर्व में उपार्जन किए हुए जो भी कर्म हैं, वे सभी कर्मों को नष्ट करने का परम साधन, निर्जरा का परम कारण तप है, इसीलिए तप को निर्जरा का साधन माना. तपस्या निर्जरा को तत्वार्थ-सूत्र में महान उमा स्वाति ने कहा-यह तप तो निर्जरा के लिए है. जगत की प्राप्ति के लिए नहीं. उस आकांक्षा से मुझे करना नहीं. तप को कलंकित नहीं करना, निर्दोष भाव से करना. ह ना - 365 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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