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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी किसी ने पाप के मार्ग का त्याग किया है, इनको यदि आप माला पहनाएंगे तो बन्दर को शराब पिलाने जैसा है. इनको आप स्टेज पर बैठाते हैं, माला पहनाते हैं, स्वागत करते हैं, इन्हें इससे कोई प्रयोजन नहीं. आदेश देते हैं आप. वे एकरूपता लाएंगें. उन्हीं से एकरूपता कराइये. आप हमें क्यों बीच में लाते हैं ? यह हमारे समाज की दशा है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनका आचरण शुद्ध नहीं, जिनके परिवार में धर्म का नामों निशान नहीं, वे हमारे धार्मिक नेता बनकर आते हैं. हमारी समस्या के समाधान के लिए वकील बनकर आते हैं. साधुओं को उपदेश देने आते हैं. महाराज ऐसा होना चाहिए जिन्हें स्वयं के जीवन का पता नहीं, ऐसे कितने ही श्रीमन्त सड़े हुए मिलेंगे. जगत में उन्हें सम्मान मिलता है, सस्ती नेतागीरी मिल जाती है. अग्रणी, अगवाने बन जाते हैं ये. आज हमारी यह स्थिति है प्रसिद्धि प्राप्त करना, पेपरों में छपना, जैसे कि ये समाज को विश्वास दिलाते हैं कि मैंने बहुत बड़ा कार्य कर डाला. हमारी इस स्थिति को देखकर जरा विचार तो करिए. कई बार बड़ा दुख होता है. दर्द होता है, इस बात का कि हम कहां जा रहे हैं ? हमारी क्या स्थिति है ? ऐसे व्यक्तियों को आप आग्रह करके स्थान देते हैं. उनसे तो हमारे चरित्रवान गृहस्थ अच्छे हैं. चरित्रवान व्यक्ति अच्छे हैं, सामान्य से सामान्य गरीब से गरीब ग्राहक उनसे लाख दर्जे अच्छा जीवन तो पवित्र है उनका, अगर हम सम्मान करते हैं तो वह हमारी आत्मा के लिए उपयोगी है. मफतलाल ने घर के अन्दर उन ब्राह्मणों को जो काशी के अन्दर पढ़ कर के आज विद्वान कहलाते परिचय किया. जब ऐसे ब्राह्मणों के अन्दर भी ब्रह्म को समझने की जरा भी रुचि नहीं, तो वर्तमान समय में ऐसे सामान्य व्यक्तियों की क्या स्थिति होगी. बाहर बैठने वाले पंडित ने कहा- अन्दर जो स्नान करने गया है. वह बिल्कुल गधा है. अपने आप को पंडित मान करके चलता है, अपने आप को बड़ा अकल वाला समझता है. गधा जैसा है. . मफतलाल मौन रहा क्योंकि वह समझदार और बड़ा गम्भीर था. वह पण्डित जैसे ही स्नान करके बाथरूम से बाहर आया. इसको अन्दर स्नान करने भेज दिया. उसे दोनो की परीक्षा लेनी थी, दोनों को कसौटी पर कसना था. वह पण्डित गया तब उससे कहा "अरे साहब! आप हमारे द्वार पर आए, अहो भाग्य में यह जानना चाहता हूँ कि आप के साथ जो पण्डित आए हैं और अब अन्दर जो स्नान करने गए हैं, वे मुझे अच्छे विद्वान नजर आए." "काहे का विद्वान है ? बिल्कुल बैल जैसा है, ढोर जैसा है, मूर्ख है." इस तरह एक दूसरे को पहचान लिया, दोनों साथ आ रहे थे. दोनों काशी से पढकर आए थे. ज्ञान का यह परिणाम निकला. पेट भरने का ज्ञान ले आए, जीवन जीने का ज्ञान उनके पास नही था. दोनों पंडित स्नान संध्या करके भोजन के लिए जैसे ही बैठे, दोनों तरफ थाली रखी हुई थी. एक में भूसा डाल दिया था, दूसरी में घास 347 For Private And Personal Use Only Here 220
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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