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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra S www.kobatirth.org गुरुवाणी हम लेकर रहेंगे. मफतलाल बोलने में तो कम थे नहीं, कहां पैसा लगता है. बड़ा लम्बा चौड़ा भाषण वहां पर चला, आप विचार कर लीजिए, खाली तपेला होता है तो आवाज बहुत आएगा. पेट भूखा था तो भौकनें मे कोई कमी रखी नहीं समय पूरा हुआ इन्द्र महाराज ने अपने दूत को भेजा बुलाकर लाओ, दरबार में हाजिर करो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूत आए और कहा- सभा का समय शुरू हो रहा है, अब चलो, वे बेचारे एक तो भूखे, इतना लम्बा चौड़ा भाषण दिया हुआ गए वहां पर सभा में बैठे तो चेहरा देखने जैसा, इन्द्र महाराज ने कहा- आपके प्रश्न का उत्तर आपको मिल गया? क्या उत्तर मिला ? अपमान किया, भोजन की थाली में बैठाकर भूखे रहे. कम अपमान है ? इन्द्र महाराज ने कहा- देवताओं के साथ भी ऐसा व्यवहार किया गया, उनसे पूछिए भूखे आए या खाकर आए. देवताओं ने कहा- महाराज हम तो पेट भरकर आए, तृप्त होकर आए एकदम पूर्ण होकर आए जरा भी भूख नहीं. मफतलाल ने कहा- आपके हाथ जब सीधे कर दिए, स्तभित हो गया, आप भोजन कैसे किए ? अरे, तुम जानते नही ? तुम्हारे में इतनी अकल नहीं, सीख लो हाथ सीधे हमारे मुंह में नहीं गए, हमने दूसरे के मुंह मे डाला, दूसरे ने मेरे मुंह में डाला, बस इतनी सी बात थी. न हमने भाषण दिया, न ठहराव पास किया, न चकचक किया, हमने तो खिलाना शुरू किया तो खिलाने वाले मुझे भी मिल गए पेट भरकर आराम से खाए तुम किसी के मुंह में डाले नहीं तो तुम्हारे मुहं में डालेगा कौन ? प्रकृति का नियम है गिव एन्ड टेक. आप देंगे आप को मिलेगा, अगर आप दान देते है तो कुदरत आपको देगा. उन्होंने कहा- देवताओं के सुखी होने का यही कारण है. उनकी उदारता. मनुष्यों का दुखी होने का कारण दान की उदारता का अभाव एक पैसा देना नहीं, ये तो बासी पुण्य लेकर आए तो वर्तमान में खा रहे हैं. कोई नई कमाई तो हो नही रही, आज का दिया हुआ कल मिलेगा, इसमें हमारा विश्वास नहीं. हमारे बागमल जी भी ऐसे ही थे, संयोग से राजस्थान का कोई भाई वहां गया होगा, नौकरी के लिए गया. लोगों ने कहा- अरे भाई वहीं जाओ, वहीं हमेशा वैकेन्सी मिलेगी. महीने की 25 तारीख को आरोप लगाकर नौकर निकाल दिया जाता है, आरोप लगा देते हैं तन्खा कौन दे. रोज ऐसा ही चला. बेचारा राजस्थान का भाई गया होगा, जाकर के कहा- मुझे नौकरी चाहिए, कहा- रह जाओ. सहधर्मी हो, अपने भाई हो. क्या आता है ? बोला- रसोई बनाना बहुत सुन्दर आता है. बेचारे ने एक महीने तक रसोई बनाकर खिलाई. इतनी स्वाद पूर्ण घर के अंदर शायद 330 For Private And Personal Use Only (2)
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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