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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी आत्मा की रक्षा के लिए बलिदान परम उपकारी, परम कृपालु, परमात्मा महावीर ने जगत के जीव मात्र के कल्याण के लिए, आराधना साधना की. उस सफलता को प्राप्त करने के लिए, अपने वर्तमान के द्वारा उस भविष्य को देखने की प्रवचन के द्वारा एक मंगल दृष्टि उन्होंने दी. जिस दिन व्यक्ति के अन्दर यह दृष्टि प्राप्त हो जाए, मानव की सारी सृष्टि बदल जाए. आज तक जगत को जानने वाला स्वयं को नही जान पाया. दुनिया का इतिहास जनाने वाले ने स्वयं का इतिहास आज तक पढ़ा नहीं. सारी दुनिया को देखने वाला आज तक स्वयं को नहीं देख पाया. मैं कौन हूँ? आज तक हमें हमारा कोई परिचय नहीं, जो भी हमने परिचय प्राप्त किया वह औपचारिक दृष्टि से, उसमें वास्तविकता का अभाव है. यहाँ तो प्रवचन के द्वारा स्वयं का ही परिचय प्राप्त करना है. मैं कौन हूं, इस इतिहास को एक बार देखना है, वर्तमान के अन्दर उस भविष्य की दृष्टि को प्राप्त करना है, जिससे मैं अपना भविष्य देख सकं. जैसा मैं आज कार्य करूंगा, वैसा ही मेरा भावी परिणाम होगा. बच्चे स्कूल के अन्दर जो पेपर करते हैं, वही रिजल्ट बनकर के आता है. वर्तमान में अपने जीवन के पेपर में जैसा आप कार्य करेंगे, जैसा विचार के द्वारा लिखेंगे, वही भविष्य में परिणाम बनकर के आएगा, मैंने गत रविवार को कहा-बिना प्रारब्ध के जगत में कभी कोई वस्तु प्राप्त नहीं होती परन्तु इन्सान का हमेशा प्रयास रहा, परमेश्वर को गौण करके जगत को कैसे प्राप्त किया जाए, इसी लक्ष्य को लेकर हमारा वर्तमान चल रहा है. भविष्य के लिए उस लक्ष्य को लेकर हमे कोई यात्रा आज तक प्रारम्भ नहीं की, कहां से वह स्थिति हम प्राप्त कर पाएंगे, जो मुझे पाना है, उसकी तो हम उपेक्षा कर रहे हैं, जो मुझे छोड़ना है. उसी के लिए जीवन का सारा प्रयास है. जो पाना है, उसे पाने का आज तक कोई प्रयास नही हुआ, जो मुझे छोड़ देना है, अच्छी तरह से हम जानते हैं. हमारी जानकारी में है, परन्तु जीवन का सारा ही प्रयास उसके लिए चल रहा है, कैसे मैं प्राप्त करूँ? चाहे वह गलत रास्ता हो चाहे सही रास्ता हो. इस बात पर आप जरा विचार करना, गौर करना, यह प्रवचन के द्वारा आपको अपना इतिहास बतलाया जाता है. हम कहां थे? कैसी स्थिति में थे? अनंत काल से, हमने अपनी साधना के द्वारा जो श्रम किया, कितनी प्रसन्नता का हमने बलिदान दिया, और उसका यह वर्तमान परिणाम कि जीवन की हमने प्राप्ति की, मोक्ष का द्वार जैसा मंगल जीवन मिला, परन्तु इस जीवन के अन्दर हमको वह दृष्टि नहीं मिली, जिससे हम जीवन के भविष्य को देख सके. 320 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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