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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3Dगुरुवाणी पूजन, अनन्त अरिहन्त, सिद्ध भगवन्तों का दर्शन, पूजन होता है. एक की पूजा कि उसमे अनेक आ गए. एक में अनेक का समावेश हो गया. ____ मैं आपके सामने यदि कहूं-विश्व कितना? विश्व शब्द का ही उच्चारण होगा, एक वचन क्षम है, बहुवचन में नहीं क्योंकि विश्व तो एक है, पर विश्व में देश कितने? बहुत. और देश एक तो प्रान्त कितनें? बहुत. प्रान्त एक तो जिला कितने? बहुत. जिला एक तो उसमें तहसील कितनी? बहत. तहसील एक तो गांव कितने? बहुत. गांव एक तो उसमें मोहल्ले कितने? बहुत. मोहल्ला एक तो मकान कितने? बहुत मकान एक तो उसमें कमरे कितने? बहुत. कमरा एक तो उसमें रहने वाले कितने? बहुत. रहने वाले एक तो विचार कितने? बहुत. यह एक के अन्दर अनेक का समावेश. एक अरिहन्त के अन्दर अनेक अरिहन्त, अनन्त अरिहन्तों का समावेश हो जाता है. कोई समस्या नहीं, एक सिद्ध भगवन्त की उपासना द्वारा अनंत सिद्धों की उपासना हो जाती है. हमारे यहां कई मन्दिरों में ऐसे सामान्य सिद्ध-भगवन्तों की मूर्ति मिलेगी. मरुदेवी माता की मिलेगी, भरत महाराजा की मिलेगी, कई जगह पर आप पालीताना शत्रुजंय पर जाएं, पांचों पाण्डवों की मूर्ति मिलेगी, वे कोई तीर्थंकर नहीं थ, पर सिद्धगामी आत्मा थे, सिद्धपुरुष थे, मोक्ष में गए. आप पालिताना जाएं पांचों पाण्डवों की मूर्ति कायोत्सर्ग अवस्था में मिलेगी. ऐसे अनेक जगह पर आपको इसका प्रमाण मिल जाएगा, मेरे ख्याल से प्रश्न कर्ता का पूरा सम्मान हो जाएगा. एक दूसरा प्रश्न उसके अन्दर उन्होंने जिज्ञासा काल की अपेक्षा से , शास्त्रों में कई बार वर्णन आता है. परमात्मा तीर्थंकरों की अवगाहना. अवगाहना का मतबल होता है. शारीरिक उंचाई का एक माप. प्रश्नः- आदिनाथ भगवान की अवगाहना कितनी थी? पूछा-धनुष का प्रमाण कितना? हमारे यहां प्रमाण तीन प्रकार का होता है, आत्मागुल, प्रमाणांगुल और हस्तागुल. ये तीनों शास्त्रीय प्रमाण माने गये. ये जो धनुष का प्रमाण 500 धनुष की काया का माना गया, एक धनुष ढाई हाथ का होता है. वह ढाई हाथ का प्रमाण आत्मांगुल . स्वयं के अंगुल के प्रमाण से उसे प्रमाणांगुल माना गया. ऐसे पांच धनुष की काया उस जमाने में थी. धनुष का प्रमाण शास्त्र में इस प्रकार का आता है. ___परन्तु उन्होंने एक नया प्रश्न किया कि यह काल अवसर्पिणी उत्सर्पिणी हमारे यहां काल चक्र है, और काल चक्र के अन्दर दो विभाग किए गए हैं, उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी. वर्तमान काल अवसर्पिणी का है, जो उत्तरोत्तर सब चीज घटती चली जाती है. यह इक्कीस हजार वर्ष का काल है. छ: महावीर के निर्वाण. छठा आरा आएगा, आरा का मतबल काल के छ: भाग किये गए हैं. उसके अन्दर ये पंचम काल पांचवा चक्र चल रहा है. और यह co - 314 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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