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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: लिए अगर हम प्रयास करें तब तो जीवन सफल बन जाएगा. चित्त को समाधि देने वाला, मन को प्रसन्न करने वाला बन जाएगा, समाधान मिल जाएगा. जो भी जिज्ञासा है वह अन्तर की चाहिए. उन प्रश्नों के उत्तर के अन्दर हृदय की प्यास भी चाहिए. उन प्रश्नों के अन्दर स्वयं को पूर्ण बनाने का एक अन्तर्भान भी होना चाहिए कि चित के समाधान के लिए, अपनी श्रद्धा को और दृढ़ करने के लिए, इस प्रकार प्रश्न करता हूं. मेरे प्रश्न के अन्दर मात्र स्वयं की कामना है. अपनी श्रद्धा को निर्मल करने की भावना है. शंका-कुशंका अपनी श्रद्धा को मलिन करते हैं और श्रद्धा ही धर्म की इमारत है, धर्म ही एक परम साधना है. स्वयं को पाने की बहुत बड़ी इसकी व्याख्या है. बहुत विशाल इसका क्षेत्र है. परमात्मा महावीर की दृष्टि में इसकी व्याख्या असंख्य प्रकार की है, आत्मा को पाने के असंख्य साधन हैं, आत्मा को शुद्ध करने के असंख्य योग हैं, परमात्म-दशा को प्राप्त करने के असंख्य योग, असंख्य प्रकार से हैं, एक प्रकार अपने को स्वीकार कर लेना पड़ेगा. एक रास्ता नहीं, अनेक रास्ते प्रभु ने बताए, उस रास्ते से यदि हम चलते हैं तो हमारी गति के अन्दर विश्राम मिल जाएगा. मेरी यह बात थी, प्रश्न से पूर्व एक भूमिका कि जितने भी प्रश्न हों, वे मन के समाधान के लिए हों. अपनी श्रद्धा को निर्मल करने के लिए हों. अपनी भावनाओं को शद्ध करने के लिए हों. उसके अन्दर अन्तर में एक जिज्ञासा हो, स्वयं को जानने की उन प्रश्नों के माध्यम से भी स्वयं को जाना जा सकता है परन्तु अधूरे व्यक्ति कभी उसे पा नहीं सकते. अधूरी जानकारी लेकर चलने वाला कभी पूर्णता की जानकारी नहीं पा सकता. ____ मैंने आपसे अभी कहा हमने इस भविष्य में कभी खोज किया ही नहीं. आज तक कभी सफल इन्वेस्टिगेशन हमने किया नहीं, कभी एकान्त में बैठ कर के स्वयं को जानने की जो प्रक्रिया बतलाई गई, वहां तक हम पहंचे नहीं. ध्यान के द्वारा चित्त-वृतियों का निरोध करके, इन्द्रियों के विकारों का दमन करके उसे जानने का हमने प्रयास किया नहीं, ___मैं कौन हूं? जीवन का एक सबसे बड़ा प्रश्न है. उस प्रश्न के लिए हमने कभी ऐसा प्रयास नहीं किया, अगर बैठे होते हैं स्वयं को खोज निकालने तो स्वयं को आप पा लेते हैं, स्वयं की अनुभूति आपके अन्दर आ जाती है, वह तभी संभव हो सकता है जब चित-वतियां शान्त हों. यह धर्म-बिन्दु ग्रन्थ इसीलिए रखा गया ताकि निर्मलता प्रदान करे, आपके चित को ऐसी स्थिरता प्राप्त कराये. आत्मा को आरोग्य लाकर के दे, उसके बाद जो भी आप जानने का प्रयास करेंगे स्वयं को दिखाने का प्रयास करेंगे, बड़ी आसानी के उसका प्रतिबिम्ब आपको नजर आयेगा. पानी यदि गन्दा है. गन्दे जल के अन्दर यदि आप स्वयं को देखो, प्रतिबिम्ब नजर नहीं आयेगा. पानी यदि हिलता है, यदि उसमें लहरें आती हों तो भी आपका चेहरा स्पष्ट । - - - 306 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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