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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - -गुरुवाणी - - साधु ही अगर गलत चीजों को उत्तेजित करे और यदि गलत मार्ग दर्शन दे तो साधुता कहां रही? आप विचार करना. यह विषय काफी लम्बा है. इन सूत्रकारों ने इसके उपरान्त बहुत सुन्दर विवेचन किया. ऐसे साधु पुरुषों के अवर्णवाद से अपनी आत्मा का रक्षण करना इनका सूचन है. कल फिर इस वस्तु पर विचार करेंगे. आज समय काफी हो गया क्योंकि ये बहुत समझने जैसा विषय है कि अपनी साधुता किस प्रकार की होनी चाहिये. महावीर परमात्मा ने किस प्रकार का मार्ग दर्शन दिया है और हम कहां कैसी स्थिति में खड़े हैं. जरा विचार करना. भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष अपनी आराधना के द्वारा, चित की प्रसन्नता में पूर्ण समता के द्वारा, इस निर्वाण कल्याण की आराधना करना तो भी संसार अपना विसर्जन हो. भव संसार बढ़ाने के लिए हमारी आराधना नहीं, उसे मर्यादित या समिति या नष्ट करने के लिए हमारी साधना है. क्रोध और कषाय से इस पर्व की आराधना हमें नहीं करनी है. हमें कोई जगत के प्रलोभन से या किसी प्राप्ति की आकांक्षा से पर्व की आराधना नहीं करनी है. यहां तो त्याग की भूमिका पर इस त्याग की आराधना करनी है, उस पर्व की आराधना पर कल विचार करेंगे. "सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम" - अपनी सुरक्षा स्वयं ही करनी है. गैर कोई आपको बचाए – इस बात में दम नहीं है. सब संयोग-साथी हैं. स्वयं के कदमों से चलकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं. केवल इतना ख़याल रखें कि जीवन के इस यात्रा-पथ में सदविचार और सदाचार का पाथेय अपने साथ हो. 303 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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