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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी - नहीं, एकान्त में जरा ध्यान से देखा तो मालूम पड़ा – अहो बाबा जी का नाटक चल रहा है. सोना मोहर गिन रहे हैं और उनको थैली में डाल रहे हैं. मफतलाल यह देख रहा था कि ये रखते कहां हैं? क्योंकि वही उसकी जानकारी में आना चाहिये. बाबा जी ने कहीं नहीं रखा, गाड़ा भी नहीं, जटा के अन्दर की थैली. जो कोथली थी उसमें सोना मोहर डाल ली. जटा बांधना मालूम पड़े नहीं कि बहुत बड़ी जटा थी. मफतलाल समझ गया कि इन को अब पूरा साधु बना दूं. यह बेचारा परिग्रह की वासना में डूब जाएगा. इसको बचा लूं. बचाने की भावना थी और मुझे भी लाभ मिल जाए. एक पंथ दो काज. मैं डूबू इसकी चिन्ता नहीं पर इनको बचा लूं. दो दिन बाद मफतलाल बाबा जी के पास गये, नमस्कार किया, मन में तो जानते थे. माया कपट तो था ही, बड़े भाव से नमस्कार किया. कहा - बाबा जी पांच मोहर नहीं, मेरी भावना है, बरोबर सौ मोहर परोपकार में देना है. आप जैसे सत्पुरुष को घर में बुलाकर भोजन भी देना हैं. भोजन के पश्चात् आपकी इच्छा के अनुसार मुझे दान करना हैं. बाबा ने देखा, बड़ा अच्छा भक्त मिला. यहां तो एक मोहर देने वाले भी कम हैं. यह सौ मोहर सोना खर्च करेगा. इतनी मोहर खर्च करेगा. कहा – बेटा आयेंगे. दिन निश्चित कर लिया. घर में बड़ी सुन्दर तैयारी की. बलि का जो बकरा होता है. खूब माल खिलाया जाता है. बाबा जी को घर में बुलाया. कुछ मित्रों को लेकर स्वयं भी आया, स्वागत किया. बड़े आदर से बाबा जी को ऊपर ले जाकर भोजन करवाया, चांदी की थाल में न जाने कितने मिठाई पकवान सजाये. __ भोजन करते-करते मफतलाल पहुंचा और कहा - बाबा जी और कुछ चाहिये तो फरमाइये. __नहीं बेटा, अब तो तृप्त हो गया, भोजन बड़ा सुन्दर बना. बहुत आशीर्वाद तुझे देकर जाऊंगा. अरे बाबाजी, अभी तो बहुत बाकी है. आपकी सेवा भक्ति करना तो बहुत बाकी है. वह एक दम बाहर गया. अन्दर तिजोरी पड़ी थी, चाबी लगाई हुई थी, नाटक ऐसा किया बाबा जी के पास आकर के, सीरा डाला, पेड़ा डाला. कहा बाबाजी इसे तो लेना ही होगा. अरे बेटा - बस कर, बहुत हो गया. और कुछ नहीं चाहिये. भोजन करके बाबाजी बैठे ही थे. मफतलाल ने आकर के तिजोरी खोली. दो तीन बार तिजोरी देखी, ऊपर नीचे देखा. बाबा जी से पूछा बाबा जी यहां आप भोजन कर रहे थे. कोई आया था. ना बेटा कोई नहीं आया. 301 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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