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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: सहनशीलता और प्रायश्चित्त परम कृपालु आचार्य श्री हरिभद्र सूरिजी ने अनेक आत्माओं के कल्याण की मंगल भावना से अपने जीवन का एक सुन्दर अनुभव लोगों के मार्ग दर्शन के लिए दिया है. किस प्रकार अपने आचार को सक्रिय बनाकर व्यक्ति अपने मूर्छित विचारों को जागृत करने वाला बने. उन विचारों के द्वारा अपनी साधना के जीवन की सफलता माध्यम से प्राप्त हो. यही मंगल आशय और इसी कामना से उन्होंने धर्म प्रवचन का यहां पर उल्लेख किया है, जीवन के सम्यक् आचारों के द्वारा जीवन को प्राप्त करने का सरल उपाय बतलाया है. जिन सत्रों पर अपना चिन्तन चल रहा है. वे बहत विचारणीय हैं. चिन्तनीय हैं. साथ में अनुकरण करने के योग्य हैं. मात्र विचार और चिन्तन से काम नहीं चलता, उसे जीवन के व्यवहार के सक्रिय बनाना पड़ता है. जानकारी से आरोग्य नहीं मिलता, दवा की पहचान से भी आरोग्य नहीं मिलता. मात्र प्रवचन श्रवण कर लिया, आत्मा को प्राप्त करने की प्रक्रिया और उसकी जानकारी प्राप्त कर ली जाए, परन्तु यदि आचार का पथ्य न हो. उन विचारों को यदि सक्रिय रूप न दिया जाए. वे विचार कभी आत्मा को आरोग्य देने वाले नहीं बनते. वे विचार कभी मेडिसिन नहीं बनते. वे विचार कभी जीवन की साधना में सफलता देने वाले नहीं बनते. इन सारी बातों पर विचार कर लेना है. प्रवचन इसी लिए दिया जाता है ताकि अन्तरात्मा को उसकी प्रेरणा मिले. सुषुप्त चेतना में जागृति आ जाए. हमारे सामने इस वर्तमान में, उस भविष्य को, प्रवचन के प्रकाश में, देखने योग्य बन जाएं. किस तरह मुझे चलना है, उसकी जानकारी मिल जाए. इसीलिए प्रति दिन प्रवचन आत्मा की खुराक के रूप में दिया गया है. “ज्ञानामृतस्य भोजनम्" आत्मा का भी दिव्य भोजन है. हम रोज इसे प्राप्त करते हैं. परन्तु यदि आहार का पथ्य आ जाए, यह औषधि अमृत बन जाती है. जीवन व्यवहार में अलग-अलग प्रकार से आहार का परिचय है. जीवन व्यवहार का अलग-अलग प्रकार से परिचय दिया. जन्म के पश्चात जब व्यक्ति उपार्जन के योग्य बन जाए. माता पिता को सन्तोष और समाधि देने वाला बन जाए, उस अवस्था में द्रव्य उपार्जन किस प्रकार से करना, उसका तरीका बतलाया. उपार्जन के बाद उसका व्यय कैसे करना. दान धर्म के द्वारा उसका परिचय दिया. व्यक्ति जब युवावस्था में प्रवेश करता है. अपने आचार को सुरक्षित रखने के लिए सदाचार की प्रवृत्ति में स्थिर रहने के लिए किस प्रकार विचार करना, उसका भी इसके अन्दर परिचय दिया गया. 281 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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