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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी सुई को कभी नीचे नहीं रखेगा. टोपी में, पगड़ी में या गर्दन के कालर में लगाकर रखेगा. नीचे रखने से दुर्घटना हो सकती है, पांव में लग जाये तो उठाना मुश्किल होता है. ऐसे कई कारण हैं. अतः दर्जी ज्यादातर उसे टोपी में ही रखते हैं. इतना बड़ा सम्मान. छोटी सी सुई उसके कार्य को लेकर, उसकी नम्रता को लेकर उसका यह सम्मान कि उसे टोपी में रखा जाता है. परन्तु इतनी बड़ी जो कैंची होती है, उसका धन्धा है काटने का. अलग करने का, वैर और कटुता का. उसका परिणाम यह कि उसे पांव के नीचे दर्जी दाब करके रखता है. कितना बड़ा अपमान. व्यक्ति कितना भी बड़ा हो जाये परन्तु यदि उसके अन्दर नम्रता और लघुता का अभाव होगा, गर्व से यदि उसका जीवन परिपूरित होगा, वह कभी जगत में सम्मान प्राप्त नहीं कर पायेगा. सुई जैसी एक लघु वस्तु भी जगत का सम्मान प्राप्त कर सकी, तो फिर हमारे जैसा इन्सान यदि उसके जीवन में नम्रता आ जाये और विनम्रता के द्वारा यदि करने की भावना आ जाये, सारे जगत के कल्याण की कामना आ जाये, तो सम्मान का क्या दुष्काल मिलेगा. कोई दुष्काल नहीं. एक रूपता आ जायेगी. संवत्सरी महापर्व के दिन इसी लिए नम्रता पूर्वक क्षमापना को स्वीकार किया गया. यह पांचवां प्रतिक्रमण इसीलिए किया जाता है ताकि जीवन के संपूर्ण पापों से मैं अपनी आत्मा को मुक्त करूं. किसी भी आत्मा से किसी प्रकार की कटुता वैर-विरोध मेरे अन्दर नहीं रहे, पूर्णतया सहन करने की अन्दर में रुचि आनी चाहिये. भगवान ने कहा कि जो सहन करता है, वही सिद्ध बनता है. जहां सहन करने की ताकत नहीं, वह सिद्ध भी नहीं बन सकता. ___ पहले तो स्वयं को इस योग्य आप बनाइये. हम तो शब्द को भी सहन नहीं कर सकते. जगत की मार को क्या सहन करेंगे? साढे बारह वर्ष तक महावीर को सहन करना पड़ा. जगत की मार खानी पड़ी. बड़े-बड़े महापुरुषों को जगत का तिरस्कार सहन करना पड़ा. अपमान सहन करना पड़ा, और वे सब पचा गये. जहर भी अमृत बन गया, वे सिद्ध बन गये, जगत की कटुता को पचाने वाला व्यक्ति जहर को अमृत बनाता है. सहन करने वाला व्यक्ति जगत में सिद्ध बनता है. महा पुरुष बनता है. रास्ते के अन्दर बड़ा सुन्दर गुलाब का फूल खिला था. लोग बड़ी प्रशंसा करते जा रहे थे. संयोग से एक छोटा सा पत्थर रास्ते में गड़ा हुआ था. उससे कई व्यक्तियों को ठोकर लगी, कई व्यक्तियों के पांव से खून निकल गया. लोग उसका तिरस्कार करते धिक्कारते, बड़ा गजब का पत्थर है, ठोकर मारता है, कोई सुन्दरता नहीं. ____ अपनी प्रशंसा से गुलाब के फूल को बड़ा अहंकार हो गया. गर्व प्रकट हो गया. बोला - "मेरे जैसा सुन्दर इस जगत में कोई पदार्थ नहीं, मेरी सुन्दरता देखकर अच्छे से अच्छे व्यक्ति मोहित हो जाते हैं, मेरा आकर्षण ऐसा है. मेरे पास सुगन्ध है. मेरे पास सब कुछ है. इस पत्थर में सुन्दरता नहीं, खूबसूरती नहीं, कोई सुगन्ध नहीं, रास्ते के अन्दर न । 275 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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