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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी औरंगजेब को पंडितों ने कहा – “हजूर हमारे जितने भी पूर्वज हैं. हमारी हिन्दू संस्कृति के अंदर, जो भी हमारे पूर्वज हुए, मरकर के उनकी आत्मा देवगति में जाती है. आकाश में जाती है. स्वर्ग के अंदर जाकर ग्रह नक्षत्र देखती है, जो गति होती है उनकी सूचनाहमको देते हैं. हम लोग पितृ पक्ष में तर्पण करते हैं. उन्हें आह्वान करते हैं. उन आत्माओं को तृप्त करने का प्रयास करते हैं. वह पूर्व सूचना हमको सब मिल जाती है कि कौन सी घटना घटेगी. ग्रहण कब होगा. दुष्काल कब पड़ेगा. बरसात किस नक्षत्र में आएगी. उसकी पूरी जानकारी हमको मिल जाती है. हजुर ऊपर का विभाग तो हमारा है मुल्ला, मौलवी, पीर, फकीर, हजूर सब गाड़े जाते हैं. धरती में क्या होता है वह डिपार्टमैंट उनका है." __औरंगजेब ने कहा – “इनको निकाल बाहर करो.” समझ गए बड़े होशियार होते हैं. आप इनको नहीं समझ सकते कि हजूर नीचे बात तो वही जानेंगे, आप मौलवियों को बुलाइए. ___मफतलाल सेठ हाथ दिखा रहे थे और कहा – अरे, तुम्हारी तकदीर बड़ी सिकन्दर है. जाते ही धूल से पैसा पैदा करोगे. क्या बात करते हो. मैं अच्छा मुहूर्त देता हूं इस मुहूर्त का परिणाम यह है कि जाते ही वहां चांदी ही चांदी है. अरे मरोगे तो तुमको स्वर्ग भी मिलेगा. बेताज बादशाह बन जाओगे. तुम्हारा पुण्य सिकन्दर है. पर ग्यारह रुपया यहां दे जाओ, मैं जरा अनुष्ठान की विधि कर दूं. इसके बाद यह परिणाम आएगा. संसार स्वर्ग बनेगा. मरोगे तो बैकुण्ठ मिलेगा. करोड़ों की संपत्ति आएगी. पंडित के शब्द में बड़ा जादू था. आकर्षण था, शब्द की सुंदरता बहुत थी. ___ मफतलाल भी कम नहीं था, दिल्ली से गया था. उसने कहा पैसा गया, अक्ल नहीं गई. उसने कहा - "पंडित जी! आपने जब इस प्रकार से आशीर्वाद दिया तो दक्षिणा देने में कमी क्यों रखू, बंबई, दिल्ली, कलकता, सब जगह पर आपको इनाम में दक्षिणा देना है. “बड़ा गुस्सा आया पंडित को – “क्या दिल्ली, बंबई, कलकता तेरे बाप का है?" "तो क्या पंडित जी स्वर्ग और बैकुण्ठ आपके बाप ने खरीदा है कि आपने आशीर्वाद में दे दिया?" बड़े अक्ल वाले आदमी थे चन्दूलाल और मफतलाल. दोनो मिल गए – कहा कि जरा तकदीर तो आजमाओ, मैं खाली हूं. चन्दूलाल मिला उसने कहा - मैं भी खाली हूं. घूमते फिरते एक रास्ता निकल आया. उन्होंने कहा “यार! ये प्लास्टिक के गिलास ले लें. गर्मी के दिन हैं जरा शर्बत बनाएं अपने पास थोडी पंजी हैं. प्लास्टिक के गिलास बालटी और शक्कर, खूब कमाई होगी यार, क्योंकि हजारों, लाखों आदमी चौपाटी घमने आते हैं. एक-एक गिलास भी लेंगे तो पैसे की बरसात हो जाएगी. महीने दो महीने तक धन्धा चलेगा फिर कोई नया व्यापार शुरू करेंगे." दोनों समझ गए पर लाभान्तराय कर्म जिसे कहा जाता है, वह तो अपने भाग्य का दोष है, चाहे कितना भी कोई प्रयास करे. 271 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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